अब जब चुनावी घमासान पुरे जोरो पर है और आम चुनाव के चार चरण समाप्त हो चुके है तब जाकर कांग्रेस ने मोदी को घेरने की रणनीति में बदलाव किया है "वाह भाई बड़ा जल्दी जाग गए " लगता है कांग्रेस 2019 के चुनाव की तैयारी अभी से शुरू कर रही है क्युकी जिस बॉडी लैंग्वेज में कांग्रेस के नेता दिख रहे है उससे तो लगता है वो मान कर चल रहे है की इस बार कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ होना तय है, हो भी क्यों न जिस राजनीतिक ज़मीन को कांग्रेस ने पिछले 10 वर्षों में खोया है उसको पाने में उन्हें किसी चमत्कार की जरुरत अवश्य है। ऐसा हर बार कांग्रेस के साथ होता रहा है इंदिरा गांधी के समय से जब भी कांग्रेस मजबूत बन कर सत्ता में आई उसे हर बार बड़ी निर्दयता से आम जनता ने अस्वीकार किया है चाहे वो आपातकाल के बाद की स्तिथि हो या राजीव गांधी की हत्या के बाद की स्तिथि जिसमे जनता दाल और खास कर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी मजबूत जमीन तैयार की भले ही वो कट्टरवाद को ही क्यों न बढ़ावा देता हो।
राजनीती में जब कभी भी उन्माद का जन्म हुआ तब किसी नयी पार्टी अथवा ठोस राजनीतिक मुद्दो का उदय हुआ और उसी तरह की उन्माद में में ही भारतीय जनता पार्टी और उसके मुद्दे उदय हुए है चाहे वो आपातकाल के बाद जनसंघ का जन्म हो या राजीव गांधी का अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने का फैसला हो या फिर विश्वनाथ प्रताप सिंह का मंडल आयोग लाने का फैसला हर बार और बार बार फ़ायदा भाजपा को मिला है, जहाँ ताला खुलवाने के फैसले से उन्हें राम मंदिर का मुद्दा मिला वही मंडल आयोग के आने से उन्हें कथित हिन्दू वोट बैंक के जातिगत आधार पर टूटने का डर बैठा जिसके वजह से 1991 का अयोध्या की घटना घटी जिसकी पृष्ट्भूमि थी की लोग पहले हिंदुत्वा के बारे में सोचे न की अपनी जाति के आधार पर।
ठीक उसी तरह आज भी यही हो रहा है 2009 के बहुमत के बाद आज कांग्रेस के पास चुनावी मुद्दो का अभाव है ओपिनियन पोल की माने तो कांग्रेस अपने राजनीतिक इतिहास में इसबार सबसे कम सीट जितने वाली है और ये बात अब कांग्रेस को भी पता है इसी के मद्देनजर वो इस बार आधे-अधूरे मन से चुनावी मैदान में है और इस बार भी फ़ायदा भाजपा को होने जा रहा है जो की हमेशा होता आया है लेकिन गौर करने वाली बात है की इस बार की लड़ाई कांग्रेस जातिगत आधार से ऊपर उठ कर सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता बनाने पर अड़ी हुई है क्युकी मोदी के नाम की घोषणा होने पर उन्हें लगता था की इस बार मुसलमान भी मोदी से भयभीत हो कर कांग्रेस को वोट देंगे और अपार ध्रुवीकरण होगा लेकिन इस बार के चुनाव में ध्रुवीकरण तो हो रहा है लेकिन दिलचस्प बात है दोनों तरफ से हो रहा है और यही पर कांग्रेस की सारी तथाकथित रणनीति धूल फाँकने लगी है।
कल ही कांग्रेस ने अपने वेबसाइट पर अटल बिहारी वाजपेयी की एक तस्वीर डाली है जिसमे श्री वाजपेयी चिंतित मुद्रा में दिख रहे है और उनके तस्वीर के निचे लिखा है :-
जरा सोचिये
"श्री मोदी ने राजधर्म का पालन नहीं किया।
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जिस व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद के योग्य भी नहीं समझते थे, क्या आप देश का भविष्य उस व्यक्ति के हाथ में दे सकते है ? "
मगर कांग्रेस ये लिखना भूल गयी की अगर देश की बागडोर श्री मोदी को नहीं दे सकते तो किसे दे उन्होंने तो किसी का नाम भी नहीं लिखा, क्या फिर से श्री मनमोहन सिंह जैसे किसी को दे जिनके बारे में श्री संजय बारु जो की प्रधानमंत्री के मुख्य मीडिया सलाहकार रहे है ने कहा की देश की असली बागडोर परदे के पीछे से सोनिया जी चला रही थी बिना जबाबदारी के पद का उपयोग ये शायद विश्व में पहली बार हो रहा हो।
मुद्दो के अकाल से ग्रसित कांग्रेस इस चुनाव में जा चुकी है मगर anti-incombancy और शसक्त नेतृत्व और दूरदर्शिता के आभाव में वो पराजय की ओर बहुत तेजी से भाग रही है ,शायद ये पहला चुनाव है जिसमे जाने से पहले सारी पार्टी को निर्णय का पहले से अंदेशा हैं और इस चुनाव में वो सिर्फ खानापूर्ति के लिए लड़ रही है।
देखने वाली बात ये है की आपातकाल के बाद जिस प्रकार इंदिरा गांधी का उदय हुआ,1991 के बाद के सालो में जिस प्रकार सोनिया गांधी का उदय हुआ उसी प्रकार 2014 के चुनाव के बाद कांग्रेस को फिर से खड़ा करने के लिए कौन से नए गांधी का उदय होता है, वैसे राहुल भी अच्छा सिख रहे है देखते है दस सालो की निष्क्रिय राजनीती करने का राहुल का दंड जनता कांग्रेस को आने वाले कितने सालो तक सत्ता से दूर रख कर देती है वही कांग्रेस का एक धड़ा प्रियंका गांधी के लिए काफी उत्साहित है और धीरे-धीरे कांग्रेस की तरफ से आने बयानों में ये और पुख्ता होगा, अब राहुल और प्रियंका किस तरह से 128 साल पुरानी सुस्त पड़ चुकी पार्टी में जान फुँकते है और उन्हें ऐसा करने में कितना वक़्त लगता है वैसे ये बात तो आने वाली भाजपा सरकार (थाकथित ) अथार्थ मोदी सरकार पर भी निर्भर करेगा।
अंशुमान श्रीवास्तव
राजनीती में जब कभी भी उन्माद का जन्म हुआ तब किसी नयी पार्टी अथवा ठोस राजनीतिक मुद्दो का उदय हुआ और उसी तरह की उन्माद में में ही भारतीय जनता पार्टी और उसके मुद्दे उदय हुए है चाहे वो आपातकाल के बाद जनसंघ का जन्म हो या राजीव गांधी का अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने का फैसला हो या फिर विश्वनाथ प्रताप सिंह का मंडल आयोग लाने का फैसला हर बार और बार बार फ़ायदा भाजपा को मिला है, जहाँ ताला खुलवाने के फैसले से उन्हें राम मंदिर का मुद्दा मिला वही मंडल आयोग के आने से उन्हें कथित हिन्दू वोट बैंक के जातिगत आधार पर टूटने का डर बैठा जिसके वजह से 1991 का अयोध्या की घटना घटी जिसकी पृष्ट्भूमि थी की लोग पहले हिंदुत्वा के बारे में सोचे न की अपनी जाति के आधार पर।
ठीक उसी तरह आज भी यही हो रहा है 2009 के बहुमत के बाद आज कांग्रेस के पास चुनावी मुद्दो का अभाव है ओपिनियन पोल की माने तो कांग्रेस अपने राजनीतिक इतिहास में इसबार सबसे कम सीट जितने वाली है और ये बात अब कांग्रेस को भी पता है इसी के मद्देनजर वो इस बार आधे-अधूरे मन से चुनावी मैदान में है और इस बार भी फ़ायदा भाजपा को होने जा रहा है जो की हमेशा होता आया है लेकिन गौर करने वाली बात है की इस बार की लड़ाई कांग्रेस जातिगत आधार से ऊपर उठ कर सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता बनाने पर अड़ी हुई है क्युकी मोदी के नाम की घोषणा होने पर उन्हें लगता था की इस बार मुसलमान भी मोदी से भयभीत हो कर कांग्रेस को वोट देंगे और अपार ध्रुवीकरण होगा लेकिन इस बार के चुनाव में ध्रुवीकरण तो हो रहा है लेकिन दिलचस्प बात है दोनों तरफ से हो रहा है और यही पर कांग्रेस की सारी तथाकथित रणनीति धूल फाँकने लगी है।
कल ही कांग्रेस ने अपने वेबसाइट पर अटल बिहारी वाजपेयी की एक तस्वीर डाली है जिसमे श्री वाजपेयी चिंतित मुद्रा में दिख रहे है और उनके तस्वीर के निचे लिखा है :-
जरा सोचिये
"श्री मोदी ने राजधर्म का पालन नहीं किया।
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जिस व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद के योग्य भी नहीं समझते थे, क्या आप देश का भविष्य उस व्यक्ति के हाथ में दे सकते है ? "
मगर कांग्रेस ये लिखना भूल गयी की अगर देश की बागडोर श्री मोदी को नहीं दे सकते तो किसे दे उन्होंने तो किसी का नाम भी नहीं लिखा, क्या फिर से श्री मनमोहन सिंह जैसे किसी को दे जिनके बारे में श्री संजय बारु जो की प्रधानमंत्री के मुख्य मीडिया सलाहकार रहे है ने कहा की देश की असली बागडोर परदे के पीछे से सोनिया जी चला रही थी बिना जबाबदारी के पद का उपयोग ये शायद विश्व में पहली बार हो रहा हो।
मुद्दो के अकाल से ग्रसित कांग्रेस इस चुनाव में जा चुकी है मगर anti-incombancy और शसक्त नेतृत्व और दूरदर्शिता के आभाव में वो पराजय की ओर बहुत तेजी से भाग रही है ,शायद ये पहला चुनाव है जिसमे जाने से पहले सारी पार्टी को निर्णय का पहले से अंदेशा हैं और इस चुनाव में वो सिर्फ खानापूर्ति के लिए लड़ रही है।
देखने वाली बात ये है की आपातकाल के बाद जिस प्रकार इंदिरा गांधी का उदय हुआ,1991 के बाद के सालो में जिस प्रकार सोनिया गांधी का उदय हुआ उसी प्रकार 2014 के चुनाव के बाद कांग्रेस को फिर से खड़ा करने के लिए कौन से नए गांधी का उदय होता है, वैसे राहुल भी अच्छा सिख रहे है देखते है दस सालो की निष्क्रिय राजनीती करने का राहुल का दंड जनता कांग्रेस को आने वाले कितने सालो तक सत्ता से दूर रख कर देती है वही कांग्रेस का एक धड़ा प्रियंका गांधी के लिए काफी उत्साहित है और धीरे-धीरे कांग्रेस की तरफ से आने बयानों में ये और पुख्ता होगा, अब राहुल और प्रियंका किस तरह से 128 साल पुरानी सुस्त पड़ चुकी पार्टी में जान फुँकते है और उन्हें ऐसा करने में कितना वक़्त लगता है वैसे ये बात तो आने वाली भाजपा सरकार (थाकथित ) अथार्थ मोदी सरकार पर भी निर्भर करेगा।
अंशुमान श्रीवास्तव
accha likha hai :)
ReplyDeleteथोड़ा और कोशिश करो
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