एक खूबसूरत एहसास बेआवाज हो गया..
इश्क अब इश्क ना रहा जैसे रिवाज़ हो गया
इश्क अब इश्क ना रहा जैसे रिवाज़ हो गया
आज सैराट देखी , नागराज ने सैराट को ऐसा बनाया है जो ख़त्म होने के बाद भी आँखो के सामने तैर रहा है ।आर्ची और परश्या की प्रेम कहानी न सिर्फ महाराष्ट्र के एक कस्बे तक सीमित है अपितु ये हर जगह है जहाँ जहाँ ऐसी प्रेम कहानियाँ एक छीतीज को प्राप्त करने मे समाजिक द्वेष से असफल हो जाती है ।
फिल्म मे समाजिक बिंदुओं क समावेश इतनी बारीकी से किया गया है की व्यस्त्विक पटल पर ये फिल्म अपने अंदर हर उस दर्शक को समा लेने का दम रखती है जो समाजिक संरचना के दुष्परिणाम से कभी न कभी पीडित हुआ है ।
आंकड़े बताते है कि देश मे हर साल 2000 से ज़्यदा मौतें ऑनर किलिंग से होती है सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्यों मे हरियाणा ,पश्चमी उत्तरप्रदेश,महाराष्ट्र ,पंजाब शामिल है ।लेकिन अफ़सोस तो इस बात का है कि जो समाज सबको साथ लेकर चलने कि बात करता है वहीँ ऐसी परिस्थितयों मे ऊन नवजवान लड़के लड़कियों कि जान लेने से भी पीछे नहीँ हटता ।
आंकड़े बताते है कि देश मे हर साल 2000 से ज़्यदा मौतें ऑनर किलिंग से होती है सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्यों मे हरियाणा ,पश्चमी उत्तरप्रदेश,महाराष्ट्र ,पंजाब शामिल है ।लेकिन अफ़सोस तो इस बात का है कि जो समाज सबको साथ लेकर चलने कि बात करता है वहीँ ऐसी परिस्थितयों मे ऊन नवजवान लड़के लड़कियों कि जान लेने से भी पीछे नहीँ हटता ।
फिल्म मे यही दिखाया गया है कि आज भी एक मछुआरे के बेटे को एक पाटिल खानदान कि लड़की से प्यार करने का कोई हक नहीँ ! समाजिक मूल्य इतने बदल रहे है उसके पश्चात भी समाजिक कलह अपनी जगह वहीँ जमाये हुए है और उसके फलस्वरूप आज भी एक समाजिक रूप से प्रतिष्ठित व्यक्ति अपने रौब और दमखम से परश्या के परिवार को समाजिक रूप से बेदखल करने मे सक्षम है, इससे ज़्यादा पीडादायक है समाज के लोगो का मूकदर्शकों जैसा व्यवहार ।
इस फ़िल्म का संगीत सही मायने मे दिल को छूता है अजय-अतुल ने सिम्फॉनि की धुनों से ऐसा जादू बिखेरा है जो पूरी फ़िल्म को बाँध कर रखता है । ऐसी फिल्में ना सिर्फ़ मनोरंजन की दृष्टि से उपयुक्त है अपितु हमारे आसपास के समाजिक मूल्यों और साथ ही उनकी कूप्रवृतिओं को भी हमारे सामने प्रकट करती है ।
फ़िल्म ने रिलीस होने के एक महीने के बाद भी सिनेमाघरों मे अभी भी धूम मचा रही है , जिस रफ़्तार से फ़िल्म कमाई के सारे रेकॉर्ड को ध्वस्त किये है उससे तो ऐसा ही लगता है कि जल्द ही ये फ़िल्म 100 करोड़ के आंकड़े को पार कर जायेगी
ऐसी फिल्में ज़रूरी है देखी जाए वरना क्या पता हम समाजिक यथार्थ से परे रहे ।
ऐसी फिल्में ज़रूरी है देखी जाए वरना क्या पता हम समाजिक यथार्थ से परे रहे ।
अंशुमन श्रीवास्तव