Saturday 7 December 2013

"आप" का अरविन्द

कल चुनाव के नतीजे आने वाले है तथाकथित सेमी-फाइनल  के पोस्ट पोल सर्वे में बीजेपी को उनके उम्मीद के मुताबिक सफलता जरुर मिली है, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर बीजेपी आश्वस्त जरुर है और हमेशा कि तरह राजस्थान कि जनता हर चुनाव में अपने इतिहास को दोहराती आयी है इसलिए वसुंधरा राजे सिंधिया भी इस बार मुख्यमंत्री बन जाएँगी ऐसा लगता है, मिजोरम का हाल बहुत बुरा है सारे  सर्वे में मीडिया मिजोरम को हमेशा चीन में ही पाती  है इसलिए अगर मीडिया के चश्मे  से देखे तो ऐसा लगता है कि चाहे कोई भी मिजोरम में अपनी सरकार बना ले देश कि राजनीती एवं राजनीतिक बिरादरी को पोषित करने वालो  को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।  सबसे दिलचस्प नतीजे दिल्ली के होंगे।

साल भर पहले दिल्ली में शीला जी अपनी सरकार  चलाने  में व्यस्त थी, बीजेपी कि तरफ से विजय गोयल साहब अपने आप को दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री मान  कर बैठे थे , उसी समय उसी दिल्ली के रामलीला मैदान में एक आदमी अपनी अलग पार्टी बनायीं जिससे उसका दवा था कि कि वो भ्रस्टाचार को मिटा देगा और सभी ने उसे बहुत हलके में ले लिया था, यहाँ तक कि देश कि मीडिया ने भी उसे और उसकी "आम आदमी पार्टी " को सिरे से ख़ारिज कर दिया था वहि अरविन्द केजरीवाल आज दिल्ली कि राजनीति में सबसे बड़ा भूचाल लाने  के लिया तैयार बैठा है।  कल के नतीजे चाहे कुछ भी हो अरविन्द हारे या अरविन्द जीते लेकिन कल से दिल्ली में अरविन्द नाम का हवा जरुर बहेगी, आगे से भले ही लोग हर नए राजनीति में आने वाले को लोग अरविन्द के नाम से चिढ़ाये लेकिन उसने अपने और अपने कुछ हजार साथियो के दम पर दिल्ली में बदलाव तो अभी से ही कर दिए है, मसलन आज सबको पता है शीला कि वापसी संकट में है  और विजय गोयल का कुछ अता-पता नहीं।

एक दौर गांधी का था, एक दौर जेपी का था ,एक दौर वाजपेई का था आज का दौर भले मोदी का हो सकता हो बावजूद इसके अरविन्द का है इसमें कोई शक नहीं है, अरविन्द कोई आम नेता नहीं है और न ही हो सकते है क्युकी चुनाव के दिन ये कहना "आप वोट किसी को भी दो मगर वोट जरुर दो " ऐसा कहना अपने आप में बहुत कुछ साबित करता है और इनको बाकियो से अलग करता है।

राजनीति में ये कहा जाता है कि पहला चुनाव हारने के लिए होता है दूसरा हरवाने के लिए और फिर तीसरा जीतने के लिए मगर अरविन्द और उनकी पार्टी अपने पहले चुनाव में दूसरे पायदान पे पहुँच  गयी है यही उनकी क़ाबलियत है और हो न हो यही उनकी जीत भी है , अन्ना आंदोलन के बाद नयी नयी पार्टी बनी थी जिसके नाम पे हसते हुए हमारे  दिग्गी दादा ने अंग्रेजी में mental  bankruptcy कहा था आज वही पार्टी उनकी पार्टी के परखच्चे उड़ा  रही है,  मैंने सुना था एक बार जब योगेन्द्र यादव  जो "आप" के नेता है उन्होंने कहा था कि उन्होंने और उनकी पार्टी ने कैसे नयी पार्टी में जान डाली हर मोहल्ले हर गली में जेन के बाद आज आलम ये है कि हर आदमी राजनीती में सफाई चाहता है और वो दिन दूर नहीं जब सफाई वो झाड़ू से चाहेगा आशा करता अरविन्द तक न सही आप सब तक जरुर मेरी ये बात पहुँचे  आगे मै  उन्हें और उनकी पार्टी को बधाई देता हूँ नतीजे चाहे जो भी आये मेरा आशावादी रुख कायम रहेगा।

अंशुमान श्रीवास्तव