Thursday 17 October 2013

राजनीती का "नमो" एवं "राग" काल..!!

ये बात तो अब कांग्रेस को भी समझ में आ गई है की उनके पास मोदी रूपी चुनौती को पार पाने के लिए कोई खास उपाए नहीं है ,राहुल गाँधी को वो अपना भावी उम्मेदवार बनाने पर एकमत जरुर है परन्तु राजनीती में छवि बहुत महत्वपूर्ण होता है जैसा PR नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया एवं अपने तथाकथित भाषणों से बनायीं है वो तारीफ के काबिल जरुर है आज मोदी हर मुद्दे पे अपनी बात रखते है जरिया कोई भी हो उन्हे पसंद और नापसंद करने वाले दोनों उनकी बातो को बड़ी गंभीरता से लेते है और यही कारण  है आम इन्सान कही न कही मोदी को खुद से जोड़ता  जरुर है।

आज सोशल मीडिया पे भले ही "फेकू" को गरियाने वालो की तादात उन्हें पसंद करने वालों से कम है लेकिन वो  उनकी  की हर बात को बड़े ध्यान से सुनते है और आलोचना करने को तत्पर रहते है और इसी दौड़ में कांग्रेस की तथाकथित ट्विटर फौज जिसमे शकील अहमद ,मनीष तिवारी ,शशि थरूर भी आते है वो भी पुरे दम से उन्हें virtual world पर पटकने का प्रयास करते है वो इसमें कितने हद तक सही साबित  हुए है या होंगे ये तो हमेशा की तरह आने वाला वक़्त ही बताएगा।

राहुल गाँधी की छवि आज कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन कर रह गई है,वो सीधे तौर पर मोदी का नाम लेने से हमेशा बचते आये है परन्तु उन्ही की तरह aggressive nature को जरुर पाले हुए है ऐसा स्वाभाव उन्हें कितना आगे ले जाता है ये देखना होगा वैसे सपा का घोषणा पत्र फाड़ने के बाद उन्हें कोई खास कामयाबी तो मिली नहीं!! आगे देखना होगा।  रशीद किदवई की नयी किताब २४ अकबर रोड ने थोडा बहुत कांग्रेस के भविष्य के बारे में ट्रेलर दिखा दिया है इसी बात के डर से अब कांग्रेस अपने लिए कोई ठोस नेतृत्व की तलाश में है सोनिया गाँधी अगर वाकई में राजनीती से सन्यास ले लेती है तेंदुलकर की तरह तो आने वाला चुनाव कांग्रेस के नेतृत्व के हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाला है ,अगर इस चुनाव में राहुल का करिश्मा नहीं चलता है तो उन्हें किसी और की तरफ देखना पड़ सकता है और अगर प्रियंका गाँधी इस जिम्मेदारी को उठाती है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा वैसे शादी के बाद अपने नाम के आगे वाड्रा न लगाना और अपने आप को इंदिरा गाँधी की तरह दिखाना कोई अक्समात नहीं हो सकता।

मदनी रूपी नया जिंह सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के खेल में एक नया प्यादा बन कर आया है भाजपा जहा एकतरफ इसी अपने लिए फ़ायदामंद मान  रही है वही तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की वकालत करने वाले दल सपा ,बसपा जद-यू,कांग्रेस इत्यादि दलों को उसकी बात बहुत गहरी चुभी है, मदनी ने अपने बयान से सबसे ज्यादा कांग्रेस को अघात किया है और उसकी कमजोर नब्ज को दबा दिया है जिससे वो पूरी तरह से तिलमिलाकर रह गई है मदनी के इस बयान को किस रूप में वो देखे उन्हें समझ में नहीं आ रहा है।

चुनाव आने वाले है ऐसी बयानबाजी और लफाड़बाजी बिन बादल बरसात के रूप में आते ही रहेंगे देखना होगा किसका फसल लहराता है और किसका छप्पर इस बरसात में उड़ जाता है वैसे" नमो -राग " का क्या होता है पता नहीं परन्तु हमारे आडवानी जी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने पर खुश रहेंगे ये सुन कर अच्छा लगा लगता है "रूठे हुए बड़का फूफा मान गए है " ये एक अच्छी खबर है वही दूसरी तरफ राहुल बाबा भी दम भर प्रचार कर रहे है आशा है उनके यहाँ कोई बड़का फूफा नहीं होगा (मै  चिदंबरम या अंटोनी साहब को बिलकुल नहि बोल रहा हूँ ) आगे जनता समझदार है और मै  आशावादी। ….

अंशुमन श्रीवास्तव

COLLAGES...!!!!



आप किसी से भी कभी भी प्रेरणा पा सकते हो, मै भी इनसब से कही न कही, कभी न कभी जरुर प्रेरित हुआ हूँ और आगे भी होता रहूँ इसकी उम्मीद करता हूँ।

अंशुमन श्रीवास्तव

Monday 14 October 2013

वो पगली लड़की..!!!

अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
 जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है, 
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
 जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,
 जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,
 जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
 तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है, 
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है। 


जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
 जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं, 
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जाता है, 
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है, 
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है, 
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है, 
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है, 
 जब लाख मना करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
 जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
 तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है, 
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है...! 


वो पगली लड़की जिसकी कुछ औकात नहीं, कुछ बात नहीं 
जिसके दिल में शायद इतने  भारी- भरकम  जज़्बात नहीं 
जो पगली लड़की मेरी खातिर  नौ दिन भूखी रहती है,
 चुप चुप सारे व्रत रखती है,  मुझसे न कभी कुछ कहती है,
 जो पगली लडकी कहती है, "मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ",
 लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ, 
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
 ये कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
 जब उस पगली लडकी के संग, हँसना फुलवारी लगता है,
 तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है।
 पर उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है...!


जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है, 
जब दर्पण में आंखों के नीचे छाइ दिखाई देती है,
 जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो, 
क्या लिखते हो लल्ला दिन भर, कुछ सपनों का सम्मान करो,
  जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं, 
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाने मे घबराते हैं,
 जब साड़ी पहने लड़की का, इक फोटो लाया जाता है,
 जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
 जब पूरे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
 तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
 पर उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है...! 


जब दूर दराज इलाको से, खत लिख कर लोग बुलाते है 
जब हम ट्रेनो से जाते है, जब लोग हमे ले जाते है 
जब हमको ग़ज़लों गीतो का, वो राजकुमार बताते है
 जब हम महफिल की शान बने, इक प्रीत का गीत सुनाते है 
कुछ आँखे धीरज खोती है, कुछ आँखे चुप-चुप रोती है
 कुछ आँखे हम पर टिकी-टिकी गागर सी खाली होती है 
जब सपने आँजे हुए लड़कियाँ, पता माँगने आती है 
जब नर्म हथेली से पर्चों पर आटोग्राफ कराती है 
जब यह सारा उल्लास हमे खुद से मक्कारी लगता है
 तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है
 पर उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है…. !!! 



 सौजन्य-श्री कुमार विश्वास