Sunday 28 July 2013

MID DAY मौत



आज  मै उन २३  बच्चो  की अस्मक मौत के प्रति अपनी संवेदना ठीक उसी तरह व्यक्त  कर रहा हु जैसे मैंने उस दिन की थी जिस दिन ये घटना घटी थी.बस आज indian express की कवरेज पर फिर से मेरे अन्दर उसी दुःख का संचार हो गया है. 

चुकि घटना मेरे राज्य की है और उसपे भी मेरे अपने घर से कुछ किलोमीटर की दुरी पर है तो मानसिक अशांति कुछ ज्यादा ही है और जिस प्रकार इंडियन एक्सप्रेस के संतोष सिंह ने इस घटना पर अपनी ये रिपोर्ट प्रकाशित की है उसको पढने के बाद मेरे मन में यही विचार आया की जिम्मेदार चाहे जो कोई भी हो उसे पकड़ने के बाद भी हमारे कानून एवं समाज में इतनी शक्ति नहीं जो न्याय कर सके भले ही उन दोषियों को फाँसी की ही सजा क्यों न हो जाये इससे भी उन २३ मासूम की आत्मा को शांति नहीं  मिलने वाली है .  

आज की हमारी राजनीति हर उस घटना के लिए  जो समाज को नुकसान पहुचाती है कही कही जरुर जिम्मेदार है और छपरा में हुए इन मासूमो की मौत का कारण भी यही है, और इससे हम अपना मुह नहीं  मोड़ सकते।
गौर करने वाली बात है ये घटना तभी होती है जब सूबे के  मुख्यमंत्री अपने स्वास्थ के कारण अवकाश पर है और विपक्ष के नेता अपने पार्टी को संघठिक करने में लगे है, और इनसब घटनाओ से सीधा फ़ायदा किस राजनीतिक दल का होने वाला है इस बारे में सब जानते है ,

आज की जनता इतनी बेवकूफ नहीं है जो की ये न समझे की मिड डे मील में हानिकारक pesticides किसी इन्सान की गलती से पड़ सकता है  और जबकि उसि पानो देवी जो की उस स्कूल की रसोइया है अपने २ बच्चो को उसी खाना को खाने की वजह से खो चुकी है और जिनका एक बेटा आज भी PMCH में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है . 

आज जरुरत है हमें एक इच्छा सक्ति की  जो कही न कही उन राजनीति के ठेकेदारों के मुह पर एक तमाचे की तरह लगे और वो अपनी इस तरह की अमानवीय घटनाओ से पीछे हटे . हम भी कही न कही इनसब घटनाओ को सरकार की नाकामी की तरह  से देखते है और देखना भी चाहिए लेकिन एक अंधे दर्शक की तरह नहीं अपितु  एक जागरुक नागरिक की तरह जो सच एवं झूठ में अंतर कर सके . हमें उन सभी राजनीतिक दलों के हाथो  की कठपुतली बनने से बचना चाहिए . मै  अभी भी इन विषयों पर आशावादी हु और अगर हम जितनी जल्दी इस सच को समझ ले उसी में हमारी भलाई है. 


अंशुमन श्रीवास्तव 

Saturday 27 July 2013

आज की पत्रकारिता

मीडिया हमारे  समाज में हमेशा से एक महत्वपूर्ण स्थान रखता आया है. इसे प्रजातंत्र का चौथा स्तःम्ब भी कहा गया है, और आज के टीवी युग में हमारे दिमाग पे  असर डालने का काम मीडिया बहुत अच्छे रूप से कर रहा है . आज प्रिंट मीडिया जंहा अपने आप को बचने का बहुत प्रयास करने में लगा है  टेलीविज़न की दुनिया अपने सबसे निचले स्तर पे पहुच गई है ,
आज कल की पत्रकारिता NDTV के रविश कुमार के अनुसार अपने leutean जोन में जी रही है ,जो संसद के उन चार किलोमीटर के एरिया में पनपती है और पुरे देश को गुमराह करने में लग जाती है.

आज पत्रकारिता की विश्वसनीयता पे सवाल खड़ा हो रहा है,जहा बड़े बड़े कॉर्पोरेट घराने अपनी जिम्मेदारी से इस कदर मुह मोड़ लेते है जैसे कोई सौतेली माँ अपने बच्चो से!!!आज पत्रकार को इस कदर कैद कर लिया जाता है जैसे वो तिहार जेल में बंद हो, संपादक से भी बड़े उन न्यूज़ चैनल्स के मालिक हो गए है जो अपनी राज्य सभा की सीट के लिए अपने देश और इस समाज से सच को छुपाने और झूठ को दिखने का काम  करते है .

आज जरुरत है उस leutean जोन से बहार आने की, एक विश्वसनीय न्यूज़ दिखाने की और साथ में एक परिपक्व विषयवस्तु चुनने की जिससे हमारे जैसे युवा राजनीति एवं भारत के समाज की सच्ची तस्वीर देख सके जिन्हें उनको बनाने की जिम्मेदारी देने की बात आज का समाज करता है.

विषयवस्तु एक न्यूज़ चैनल की बेहद अहम चुनाव होता है,हम जैसे युवा न्यूज़ देख कर अपनी मानसिकता की धरना बदलते रहते है ,और इसी वक़्त हमे जरुरत होती है एक ठोस नीव की जो हमारे सामाजिक और मानसिक विकास को और परिपक्वता की तरफ ले जाये अपितु हम आज रणबीर-कटरीना के रोमांस को ज्यादा ध्यान से देखते है और पढते है, इन्ही सब की वजह से हम युवा राजनीति से दूर हुए जा रहे है.

कांग्रेस के उपाधय्छ से लेकर बीजेपी का युवा मोर्चा सभी युवा समाज को अपने तरफ करने के प्रयासरत है ,
चाहे वो नरेन्द्र मोदी का demography dividend की बात हो लेकिन ये सब वय्रथ है अगर सरकार के साथ साथ मीडिया अपनी जिम्मेदारी से पीछे हटे.

बहुत मेरी इस बात से इतेफाक नहीं रखते होंगे लेकिन आज जरुरत है मीडिया की विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए सरकार कुछ ठोस कदम उठाये जिससे ये साडी चीजे कुछ सुधर जाये


अंशुमन श्रीवास्तव।



पहला अनुभव

आज पलही बार ब्लॉग लिखने का मन हुआ तो पहला ख्याल यही आया की लिखे क्या राजनीति पे लिखे ज़िम्बम्बे में हो रहे क्रिकेट पे लिखे या फिर आज के संगीत पे लिखे पर उन सब से ऊपर यही लगा की क्या न आज कल के हॉट टॉपिक नरेन्द्र मोदी पे ही कुछ लिखा जाये।

मै बीजेपी का बहुत बड़ा सप्पोर्टर रहा हु लेकिन एक बाद एक हो रहे बीजेपी की तरफ से  बयानबाजी और फिर उनपे कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल की तरफ से मेरा मन थोडा कुंठित होता है. आज बीजेपी के पास हिंदुत्व के अलावा बहुत अन्य मुद्दे है जिनसे वो चुनाव में जा कर कर अच्छे बहुमत से सात पे आ सकता है मगर न जाने क्यों बीजेपी जानबूझ कर ऐसे गलतिया कर रही है जितनी जल्दी हो सके उन्हें ये सब पीछे छोड़ कर अपने विकाश के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरना चाहिए जिससे न सिर्फ अल्पसंख्यक समाज खास कर मुस्लिम वोट मिले जिससे वो सत्ता पे काबिज हो सके. आज बीजेपी को अटलजी की तरह का एक सर्वमान्य राजनेता की जरुरत है . न जाने क्यों दौड़ में सिर्फ अडवाणी या मोदी का नाम आगे लाया जा रहे है जबकि बीजेपी में सुषमा स्वराज , जसवंत सिन्हा , यशवंत सिंह और बहुत से ऐसे दुसरे कतार के नेता है जो सर्वमान्य है और जिनके समर्थ पे कोई शक नहीं कर सकता .


आशा है जल्द ही बीजेपी अपनी नीतियों पे वापस आ कर देश में एक ऐसी सरकार का गठन करे जो देश को आर्थिक मोर्चे पे एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाये और जो स्वप्न अटलजी और कलाम साहब ने मिल कर कर देखा था उसे पूरा करे .

हम उसी गंगा-जमुनी सभ्यता के बल पर ये प्राप्त कर सकते है और ये हमारे राजनेताओ को जल्द समझ में आ जाये उसी की कामना करता हु .


अंशुमन श्रीवास्तव