आज मै उन २३ बच्चो की अस्मक मौत के प्रति अपनी संवेदना ठीक उसी तरह व्यक्त कर रहा हु जैसे मैंने उस दिन की थी जिस दिन ये घटना घटी थी.बस आज indian express की कवरेज पर फिर से मेरे अन्दर उसी दुःख का संचार हो गया है.
चुकि घटना मेरे राज्य की है और उसपे भी मेरे अपने घर से कुछ किलोमीटर की दुरी पर है तो मानसिक अशांति कुछ ज्यादा ही है और जिस प्रकार इंडियन एक्सप्रेस के संतोष सिंह ने इस घटना पर अपनी ये रिपोर्ट प्रकाशित की है उसको पढने के बाद मेरे मन में यही विचार आया की जिम्मेदार चाहे जो कोई भी हो उसे पकड़ने के बाद भी हमारे कानून एवं समाज में इतनी शक्ति नहीं जो न्याय कर सके भले ही उन दोषियों को फाँसी की ही सजा क्यों न हो जाये इससे भी उन २३ मासूम की आत्मा को शांति नहीं मिलने वाली है .
आज की हमारी राजनीति हर उस घटना के लिए जो समाज को नुकसान पहुचाती है कही कही जरुर जिम्मेदार है और छपरा में हुए इन मासूमो की मौत का कारण भी यही है, और इससे हम अपना मुह नहीं मोड़ सकते।
गौर करने वाली बात है ये घटना तभी होती है जब सूबे के मुख्यमंत्री अपने स्वास्थ के कारण अवकाश पर है और विपक्ष के नेता अपने पार्टी को संघठिक करने में लगे है, और इनसब घटनाओ से सीधा फ़ायदा किस राजनीतिक दल का होने वाला है इस बारे में सब जानते है ,
आज की जनता इतनी बेवकूफ नहीं है जो की ये न समझे की मिड डे मील में हानिकारक pesticides किसी इन्सान की गलती से पड़ सकता है और जबकि उसि पानो देवी जो की उस स्कूल की रसोइया है अपने २ बच्चो को उसी खाना को खाने की वजह से खो चुकी है और जिनका एक बेटा आज भी PMCH में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है .
आज जरुरत है हमें एक इच्छा सक्ति की जो कही न कही उन राजनीति के ठेकेदारों के मुह पर एक तमाचे की तरह लगे और वो अपनी इस तरह की अमानवीय घटनाओ से पीछे हटे . हम भी कही न कही इनसब घटनाओ को सरकार की नाकामी की तरह से देखते है और देखना भी चाहिए लेकिन एक अंधे दर्शक की तरह नहीं अपितु एक जागरुक नागरिक की तरह जो सच एवं झूठ में अंतर कर सके . हमें उन सभी राजनीतिक दलों के हाथो की कठपुतली बनने से बचना चाहिए . मै अभी भी इन विषयों पर आशावादी हु और अगर हम जितनी जल्दी इस सच को समझ ले उसी में हमारी भलाई है.
अंशुमन श्रीवास्तव