Tuesday 19 May 2020

"तख़्त-ए-ताऊस" पे सवार इश्तहार वाली सरकार


अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार,


तख़्त-ए-ताऊस एक ऐसा सिंघासन था जो मुगलिया सल्तनत में हुआ करता था, इसकी बनावट काफी मुकम्मल और भव्य थी ,इसे शाहजहाँ ने बनवाया था, जो पहले आगरा के किले में उसके बाद दिल्ली के लाल किला में लाया गया। ऐसा कहा जाता है की उस तख़्त में एक ख़ामी थी, उसपे बैठ कर शहंशाह को सल्तनत के दुःख,गरीबी और उनपे हो रहे अत्याचार का आभास नहीं होता था। सन 1747 के एक युद्ध में ये कहीं लुप्त हो गया जिसका कोई भी प्रमाण आगे इतिहास में नहीं मिलता। आज की परिस्तिथियों को देखते हुए ऐसा लगता है कि शायद वो तख़्त आज लुट्यंस दिल्ली में ही है और उसपर बैठा हुआ एक ऐसा राजनेता है जिसकी अपनी राजनीति सदा ही मुगलिया सल्तनत की विरोध से उपजी है। ये तो निश्चित है की अब समय ऐसा नहीं है जिससे उस तख़्त पर बैठे हुए इंसान को कोई खतरा हो वरना ऐसा हो ही नहीं सकता की जो व्यक्ति अपने हर भाषण में ग़रीब, पिछड़े,मजदूर, दबे-कुचलों, वंचित शोषित की बात करता हो , वो ऐसे नाजुक दौर में उन्हें अपने हाल पर छोड़ देगा।
                                      
आत्मनिर्भर भारत के लिए जो पैकेज की घोसना २० लाख करोड़ रूपये की थी जो की हमारे जीडीपी का लगभग १० % होता है उसके बारे में विस्तार से जब वित्तमंत्री जी ने बताया उसके अनुसार इस पूरे पैकेज में लैंड, लेबर, लॉ, लिक्विडिटी और लॉस को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. पहले दिन की प्रेस कांफ्रेंस में वित्त मंत्री 5,94,550 करोड़ रुपये की योजनाओं और रिफॉर्म के बारे में बताया. दूसरे दिन 3,10,000 करोड़ की योजनाओं और बदलाओं के बारे में जानकारी दी गई, तीसरी प्रेस कांफ्रेंस में 1,50,000 करोड़ और चौथी तथा पांचवी में 48,100 करोड़ रुपये की योजनाओं और बदलावों के बारे में बताया गया. इन पांचों प्रेस वार्ताओं में सरकार ने कुल 11,02,650 करोड़ रुपये की योजनाओं और बदलावों का लेखा जोखा पेश किया. इन प्रेस वार्ताओं के अलावा सरकार ने इस पैकेज में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत दी जाने वाली राशि को इसमें जोड़ा है. वित्त मंत्री के अनुसार यह राशि 1,92,800 करोड़ रुपये है. साथ ही आरबीआई के 8,01,603 को भी इसमें जोड़ा गया है.

The Hindu अखबार में भारतीय अर्थशास्त्री तन्वी गुप्ता जैन के मुताबिक केंद्र सरकार ने अपनी घोषणा के बिलकुल उलट अतिरिक्त खर्चा जीडीपी का सिर्फ 1.2 % किया है बाकि सभी योजनाए लोन मेला कार्यक्रम जैसे है,कांग्रेस के नेता चिदंबरम के मुताबिक तो कुल खर्चा जीडीपी का 0.9 % ही है, इसका मतलब सरकार के ऊपर अतिरिक्त भार मात्र 1 से 1.5 लाख करोड़ का ही है। जिस प्रकार प्रधानमंत्री जी देश के सामने आ कर 20 Lakh Crore In 2020 का नारा देकर आत्मनिर्भर भारत के सपने को देखने के लिए कह रहे थे वो सुनने में बहुत ही उत्साहवर्धक लग रहा था, और विस्तृत जानकारी के आने से पहले सत्तादल के समर्थक इसे 1991 में उदारीकरण का जो वित्तीय सुधार नरसिम्हा राओ और मनमोहन सिंह ने किया था उसका 2.0 version बता कर देश के सामने प्रस्तुत कर दिया गया। लेकिन वास्तविकता इसके बिलकुल उलट निकली, ऐसे नारे 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भी मोदीजी ने दिए थे जो की 1.25 लाख करोड़ रुपये का पैकेज केन्द्र सरकार ने बिहार को दिए बाद में उस समय के महागठबंधन के नेता प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार के कहा था की उस पैकेज का बहुत सारा हिस्सा ऐसा था जो केंद्र सरकार ने पिछले वर्षो में बिहार को दिया ही नहीं था , इसी प्रकार आत्मनिर्भर भारत योजना भी बिलकुल ढकोसला साबित हुआ है।
आज देश के सामने कोरोना जैसी महामारी से लड़ने का संकट है और इसके रोकथाम और देश को आगे लेकर जाने में में जो सरकारी तंत्र लगा है उनकी रणनीति प्रवासी मजदूरों को ले कर बिलकुल निचले स्तर पे है ,जिस प्रकार 2016 में हुए नोटेबंदी में हर दिन नए नियम आते थे उसी प्रकार प्रवासी मजदूरों को उनके घरो तक पहुंचाने के नियमो में प्रशाशनिक स्तर के साथ-साथ सरकार के स्तर पर भी रोज़ नए नियम बदले जा रहे है जिससे मजदूरों में एक भ्रम की स्थिति बनी हुई है, आज मजदूरों की मृत्यु की घटनायें रोज हो रही है और कई हज़ार मज़दूर इस मई की तपती धुप में अलकतरे के बने सड़को पर पैदल चलने को विवश है और इन्ही रास्तों पर चलते हुए वो अपनी जान भी गवां रहे है लेकिन सरकार और प्रशाशन के पास लॉक-डाउन के ५५ दिन बीत जाने के बाद भी कोई स्पष्ट निति का आभाव दिखता है।
आज राजनीति का मकसद सिर्फ और सिर्फ इश्तहार ही रह गया है जो देश के हर घाव को छुपा लेने का दंब भरती फिर रही है और उसपे रही सही कसर इस दौर में मीडिया ने पूरी कर दी हैं। इस समय मीडिया अपने अपने ध्रुवों के समक्ष शास्टांग दण्डवत की पराकाष्ठा पर है, आशा है देश के वजीर उस तख़्त-ए-ताऊस से देश के प्रवासी मजदूरों को जरूर देखने की कोशिश करेंगे वरना जो मजदूर देश की नीव बनाते हुए देश को भव्य बनाते है वो दिन दूर नहीं जब उन्हीं की उंगलियों के बदौलत कुछ आत्ममुग्ध व्यक्तियों का समूह उस तख़्त-ए-ताऊस से उतर कर सदा के लिए जमीं पे आ जायेंगे।

अंशुमन श्रीवास्तव