Saturday 23 November 2013

नामलीला या रामलीला

साहित्य और सिनेमा भारतीय संस्कृति कि वो धराये है जो गाहेबगाहे हम सब के सम्मुख हमारी ख़त्म हो  चुकि संस्कृति को हमारे सामने लाने का काम करती है, समाज के इन दोनों अंगो में अगर राजनीति घुस जाये  तब निश्चित ही हमारा आने वाला भविष्य संकट में है ,आज के सामाजिक परिवेश में निश्चित ही इन दोनों में राजनीति अपनी अमिट  छाप छोड़ रही है।

हाल में रिलीज़ हुई संजय लीला भंसाली कि एक प्रेम प्रसंगयुक्त फ़िल्म राम-लीला को देश के कुछ हिस्सो में रिलीज़ होने से रोक देना इसी बात का प्रमाण है, फ़िल्म को देखने के बाद कहीं भी ऐसा नहीं लगा जिससे किसी खास सम्प्रदाए और धर्म को हानि पहुँचती हो, वैसे न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और अशोक पाल सिंह की लखनऊ बेंच ने सुनवाई करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामलीला समिति, बहराइच द्वारा दायर एक याचिका पर इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित किया, वैसे याचिकाकर्ता ने 1 नवंबर को फिल्म के लिए दिया प्रमाण को सेंसर बोर्ड से रद्द करने के लिए प्रार्थना की थी और विवादास्पद और आपत्तिजनक संवादों को फिल्म से निकाल देने कि मांग की थी. साथ ही याचिका में उनके अनुसार फिल्म में धार्मिक हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुची है और इसका शीर्षक 'रामलीला' से भारतीय समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ा है,राम 'लीला' (कार्य) के रूप में समाज के लिए एक गलत संदेश दे रहा है ऐसा तर्क याचिकाकर्ता का था। इसके अलावा उसने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड, उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव, इरोज इंटरनेशनल और भंसाली को भी याचिका में एक पक्ष बनाया है। 

फ़िल्म जहाँ एकतरफ रामलीला  भंसाली कि बाकि फिल्मो कि तरह भव्य और विशाल है वही दूसरी तरफ रंगो से भरी हुई है "देवदास" और "हम दिल दे चुके सनम" कि तर्ज पर बनी फ़िल्म में दीपिका अपने अभिनय से फ़िल्म में जान फूक देती है, पूरी फ़िल्म में दीपिका अपनी आँखो के बेजोड़ अदाकारी से लीला को जीवित कर देती है,रणबीर सिंह ने फ़िल्म  में जान लगा दी है और वो अपने संवाद में गुजराती स्वाद महसूस कराते है, वही दूसरी तरफ फ़िल्म में संजय गुजरात कि संस्कृति का एक और पहलू हमारे सामने प्रस्तुत करते है, पूरी फ़िल्म में गोलियाँ बेपनाह चलती है और दो समुदायो के बीच कि दुश्मनी में राम और लीला के बिच का प्यार मात्र एक नजर में होना और बाकि कि सारी घटनाये बड़ी रफ़्तार से होती है मगर फ़िल्म के दूसरे हाफ में संजय इस रफ़्तार को बनाये रखने में असफ़ल साबित हुए है, फ़िल्म का अंत एकदम "इश्कजादे" कि तर्ज पर होता है परन्तु दर्शको में अफ़सोस नहीं छोड़ पाता जैसा "इश्कजादे" ने छोड़ा था कुल मिला कर फ़िल्म सिर्फ तीन वजहों से आप देख सकते है वो है बेहतरीन संगीत , भव्य सेट और दीपिका,रणवीर सिंह का  बेहद उम्दा अभिनय।   

फ़िल्म में किसी तरह से रामजी और उनकी रामलीला से कोई सम्बंध नहीं है और जो बेवकूफ इससे ऐसा समझते है उन्हें सबसे पहले तो इस फ़िल्म को देखना चाहिए,आज जो संस्कृति के तथाकथित भला सोचने वाले है उन्हें इन ओछी भावनाओं से सर्वप्रथम बाहर आना पड़ेगा और अगर उन्हें इतनी फ़िक्र है तो जो संस्कृति के नाम पर लूट-खसोट और धंधा चल रहा है उसे सबसे पहले बंद करना पड़ेगा, आज मंदिर-मस्जिद के नाम पर जो समाज का हश्र हो रहा है वो कभी किसी भी व्यक्ति के लिए अच्छा नहीं हो सकता और यहाँ उन संस्कृति के पुजारियों को आना पड़ेगा। 


भ्रष्टाचार प्रेमी,बलात्कार प्रेमी  और हर प्रकार का अत्याचार  प्रेमी एक किस्म कि इंडियन सोसाइटी कब तक नाम से डरेगी और नाम प्रेम में मरेगी।  गोलियो की रासलीला भी पिक्चर रामलीला में अदालती आदेश से ही जुड़ा  था। गुजरात में छत्रिय समाज़ को जाड़ेजा और राबाड़ी नाम पर तकलीफ हुई तब नाम बदल कर सानेडा और राजाड़ी कर दिया गया। वैसे शेक्सपीयर ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि उनका रोमियो-जुलिएट २१ वीं सदी में इतना रंगमय और उल्लासमय होगा कि दर्शक उसे हाथो हाथ स्वीकार करेंगे। अदालतें रोक लगाती रहे लेकिन पहले हफ्ते में रामलीला ने वह कमाई कर ली है,जिससे कोई अदालत नहीं रोक  सकती।   


अंशुमान श्रीवास्तव