अपनी हर फतह पर इतना गुरुर मत कर...
भारत के गणतांत्रिक इतिहास के सत्तर सालो में 25 जून एक ऐसी तारीख़ है जिस दिन भारत के नागरिको का सामाजिक और मानवीय मूल्य न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका था 25 जून सन 1975 को
मिट्टी से पूछ आजकल सिकंदर कहाँ है...
भारत के गणतांत्रिक इतिहास के सत्तर सालो में 25 जून एक ऐसी तारीख़ है जिस दिन भारत के नागरिको का सामाजिक और मानवीय मूल्य न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका था 25 जून सन 1975 को
आधी रात से ठीक पहले तब के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फकरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के भेजे अध्यादेश पर दस्तखत कर भारतीय इतिहास तीसरी बार आपातकाल लगाया था। इससे पहले सन 1962 में भारत चीन युद्ध के समय और 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय पर आपातकाल लगाया जा चुका था।
लेकिन 25 जून 1975 के समय लगाए गए इस आपातकाल ने न सिर्फ अमानवीयता की सारी हदे पार की बल्कि देश की राजनीती में ऐसे कद्दावर और आने वाले समय के ऐसे जननेताओं को
जन्म दिया जिनका मूलतः उद्देश्य कांग्रेस विरोध ही रहा लेकिन आने वाले 42 वर्षो में देश की राजनीति ऐसे करवट बैठी की लोकनायक जयप्रकाश के आंदोलन रूपी अग्नि में जल कर कुंदन स्वरुप सभी नेता आज अपनी राजनैतिक जमीन को पुनः प्राप्त करने के लिए उसी कांग्रेस के खेमे में नजर आ रहे है। शायद राजनीति का मूल लक्ष्य अब समूची राजनैतिक पार्टियों को समझ आ चूका है आज की राजनीति में सत्ता सुख ही सारी राजनैतिक पराकाष्टा की मज़िल रह गई है।
आपातकाल एक ऐसी सोच थी जिसका मूलतः उद्देश्य सत्ता भोग था, उस समय जिस अध्यादेश पर
महामहिम के दस्खत हुए थे उसमे आपातकाल लगाने का कारण "देश की ख़राब आर्थिक स्तिथि और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा" लिखा था चुकि इतिहास उठा कर देखे तो श्रीमती इंदिरा गाँधी को उससमय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसलों से तंग आ कर ऐसा फैसला लिया जिसमे 25 सूत्रीय कार्यक्रम की बात हुई जिसमे कहा गया की इन फैसलों से देश में आर्थिक सम्पन्नता और जीडीपी विकास अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच जायेगा और देश गरीबी मुक्त हो जाएगी लेकिन दुर्भाग्य ये है की जिस तरीके का इस्तेमाल इन 25 सूत्रीय बिंदुओं को पूरा करने के लिए किया गया वह अंत्यनत दुखदायी है।
आपातकाल सिलसिलेवार तरीक़े हुई घटनाओ का परिणाम है जिसमे :-
- 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के फलस्वरूप हुई जीडीपी विकास दर की गिरावट।
- भारतीय छात्र एवं श्रमिक की अशांति जिसका मूल कारण सूखा ,बेरोज़गारी जिससे राष्ट्रीय नेतृत्व पे प्रश्न चिन्ह उठने लगा।
- ऑल इंडिया रेलवेमैन फेडरेशन तत्कालीन अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडिस ने अखिल भारतीय रेलवे हड़ताल का आयोजन सन 1974 में किया था जिसमे भारी गिरफ्तारियाँ हुई और फलस्वरूप देश में जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में बड़े पैमाने में आंदोलन प्रदर्शन हुए जिससे देश में अशांति का माहौल तैयार हो गया।
- सरकार द्वारा न्यायपालिका को नियंत्रित करने की असफ़ल कोशिश की गई और 12 जून 1975 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चुनाव में हुए धांधली के आधार पर इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को अवैध्य क़रार दिया।
- इंदिरा गाँधी को संदेह था की ये समूची आंतरिक अशांति अमेरिकी सीआईए द्वारा सावधानीपूर्वक बनाई गई एक योजना है जिसके वो उन्हें पद से हटा सके।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण(जेपी) आपातकाल के दौरान
विरोध करते हुए।
इन सभी कारणों से इंदिरा गाँधी बुरी तरह से घिर चुकी थी और फिर उन्होंने अपने पुत्र संजय गाँधी एवं अपने विश्वासपात्र वी सी शुक्ला,आर के धवन,प्रीतम सिंह भिंदर, नविन चावला
जैसे चन्द नौकरशाहों की बदौलत देश में आपातकाल लगाने की योजना पे अमल किया।आपातकाल के समय देश में जनतंत्र सारी जड़ों तो तार तार कर दिया गया
और एक तानाशाह के रूप में श्रीमती इंदिरा गाँधी देश में राज करने लगी। उस समय देश में विभिन्न विषयों पे एकसाथ काम करते हुए इंदिरा गाँधी ने :-
- मीडिया की सेंसरशिप:- गृह मंत्रालय 1976 में संसद को बताया की आपातकाल में विदेशी मीडिया के संवाददाताओं निष्काषित कर दिया गया ,स्थानीय एवं राष्ट्रीय मीडिया पर गंभीर सेंसरशिप लगाई। (श्रोत-इंडियन एक्सप्रेस)
- गिरफ़्तारी की श्रृंखला :- मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया और अगर किसी भी व्यक्ति ने सरकार का विरोध किया तो उसे आदालतों में अपील करने के अधिकार के बिना या तो हिरासत में ले लिया गया या फिर गिरफ्तार कर कर जेल भेज दिया गया था विपक्ष के तक़रीबन सभी नेताओ को जेल में भर दिया गया जेपी,जॉर्ज फर्नांडिस, मोरारजी देसाई, नानाजी देशमुख,सुब्रमण्यम स्वामी,अटल बिहारी वाजपेयी,लाल कृष्ण आडवाणी ,रामकृष्ण हेगड़े,एच. डी. देवगौड़ा, एम.करूणानिधि, जे. बी.पटनायक, ज्योति बसु ,लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव,शरद यादव एवं अन्य कई नेताओ को आपातकाल विरोध आंदोलन को नेतृत्व करने के आऱोप में जेल में भर दिया गया, जिसके फलस्वरूप संसद में विपक्ष के आभाव के कारण इंदिरा गाँधी कई कानूनों में बदलाव किया और ऐसे कई कानून भी पारित करा लिए जिसमे संसद की तीन- चौथाई बहुमत की आवश्यकता होती थी।
जॉर्ज फर्नांडिस आपातकाल के दौरान गिरफ़्तारी का विरोध करते
हुए।
- नसबंदी:- उस समय अगर "इंडिया मतलब इंदिरा और इंदिरा मतलब इंडिया" होता था तो वही दूसरी तरफ कांग्रेस मतलब संजय गाँधी भी माना जाता था, एक अभूतपूर्व शक्ति के साथ संजय गाँधी अपने आप को देश के रहनुमा समझते हुए देश में सबसे शक्तिशाली व्यक्तिव के मालिक बन गए थे, और इसी कड़ी में जो 25 सूत्रीय कार्यक्र आपातकाल में इंदिरा सरकार ने सुझाये थे उसमे 5 सूत्र संजय गाँधी के ही थे और उन्ही में से एक नसबंदी थी जिसमे जोर जबरदस्ती करते हुए देश की जनसंख्या को को काबू करने के लिए अभूतपूर्व प्रयास हुए जिसमे कई लोगो की जान तक गई।
आपातकाल के दौरान सामूहिक नसबंदी केंद्र।
- स्टेट एट्रोसिटी:- सन 1977 में आपातकाल के भयावह मंजर की जांच के लिए शाह आयोग का गठन हुआ और उनकी रिपोर्ट के मुताबिक 1975-77 के बीच कुल 1,10,806 लोगों को हिरासत में लिया गया ये सभी गिरफ्तारियां मुख्यतः मीसा क़ानून के अंतर्गत हुई, दिलचस्प वाकया ये है की इसी क़ानून के अंतर्गत गिरफ़्तार हुएलालू प्रसाद यादव ने इसपे विरोध व्यक्त करने के लिए अपनी ज्येष्ठ सुपुत्री
का नाम भी मीसा रखा था, आज श्रीमती मीसा भारती राज्यसभा सांसद हैं और अपने गृह राज्य बिहार से चुन कर आती है जहाँ पर उनकी पार्टी उसी कांग्रेस के साथ सत्ता पर आसीन है।
- तुर्कमान गेट विध्वंश फायरिंग:- संजय गाँधी की एक और महत्वाकांक्षी योजना थी झुग्गी मुक्त शहर अथार्थ गरीबी मुक्त शहर, इसी क्रम में सरकारी आदेश पर दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के नज़दीक तुर्कमान गेट से सटे झुग्गियों को प्रशाशन ने विद्यवंश कर दिया और साथ ही इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगो पर पुलिस के द्वारा फायरिंग के आदेश भी दे दिए गए जिससे मज़दूर और मासूमों गई, इसके बाद संसद में बाकायदा एक अधिनियमपास कर के इस कृत्य को दिल्ली सफ़ाई के नाम पर उचित ठहराया गया।
देश में आज आपातकाल को 42 वर्ष बीत चुके है परन्तु आज भी "अनडिक्लेयर्ड इमरजेंसी " अथार्थअघोषित आपातकाल का जिक्र होता रहता है , कई बुद्धिजीवी वर्तमान की सरकार की तुलनाउस
समय की इंदिरा गाँधी की सरकार से करते रहते है लेकिन आज के परिदृश्य में आपातकाल एक ऐसा खौफनाक
मंजर है जो देश से कभी न पड़े बेहतर है हमने सत्ता के केन्द्रीयकरण की वजह से एक
भयावह मंजर जरूर देखा है और आज की राजनैतिक परिस्थितिया भले ही पहले जैसी बन गई हो लेकिन जरुरत है एक ऐसे विपक्ष की जो देश को सही दिशा में ले कर जाये, गणतांत्रिक और प्रजातान्त्रिक व्यस्था का सबसे बड़ा फायदा है विपक्ष का सम्मिलित होना होता है,जितना सरकार किसी देश के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए जिम्मेदार है उतनी ही बड़ी भूमिका विपक्ष में बैठे राजनैतिक दलों का भी है , अगर
सत्ता पक्ष अपने राह से भटके तो जोरदार विरोध करना चाहिए आलोचना करनी चाहिए लेकिन जब राष्ट्रहित के मुद्दे हो सामाजिक सरोकारके मुद्दे हो या फिर नागरिको के हित के मुद्दे हो इसमें विपक्ष को सत्ता पक्ष का साथ देना चाहिए ताकि देश के संसद से एक ऐसी भावना का निर्माण हो जिसपे हम नागरिक होने के नाते गर्व
कर सके आज 42 वर्ष पूर्व की घटनाओ को मात्र एक भूल कह देने से उस समय नागरिको पर हुए अत्याचार
के दाग़ मिटने वाले नहीं हैं, आने वाले समय में ऐसी घटनाये न हो बस इसी बात को ध्यान में रख कर हम
सबको अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी जिसमे सर्वप्रथम स्थान राष्ट्रहित होगा।
अंशुमन श्रीवास्तव