एक और वर्ष का आगमन हो गया और बहुप्रतीक्षित वर्ष में घटनाये किसी भी हिंदी फ़िल्म कि स्क्रिप्ट के अनुसार बदल रही है अभी क्लाइमेक्स का दौर है इस वजह से हर दल अपने आप और अपने दल का भविष्य सुनिश्चित करने में वयस्त है, कांग्रेस को छोड़ कर हर दल को लगता है कि आने वाले चुनाव में उसे सत्ता कि कथित चाशनी में डूबने का मौका मिल सकता है और इन सब के लिए वो हर तरह से मन ही मन मनमोहन सिंह जी कि सरकार का धन्यवाद दे रहे है।
बात अगर सिर्फ दलगत राजनीती तक सीमित रहती तो कोई बात थी परन्तु आज हर नेता, नौकरशाह ,पत्रकार , अभिनेता ,संगीतकार ,खिलाडी एवं समाज के हर छेत्र के लोगो के अंदर एक आवाज का संचार हुआ है (जैसा वो कहते है ) इसमें कुछ अनोखी बात नहीं है परन्तु ये सब चुनाव आते ही जागृत होता है ये जरुर अनोखी बात है। अचानक हर कोई देश सेवा करना चाहता है और उन्हें लगता है कि राजनीति के जरिये ही ये सम्भव है?? दिलचस्प बात है ये वही पॉलिटिक्स है जिसे लोग कभी घटिया कह कर नकार देते थे अब उन सबका मन परिवर्तित हो चुका है वजह चाहे अरविन्द हो ,मोदी हो ,या फिर कोई और लेकिन सब मुख्य-धारा राजनीती में शामिल तो हो रहे है परन्तु कितने दूर तक पहुचेंगे ये देखने वाली बात होगी।
फेडरल फ्रंट का शगूफा एक बार फिर से छिड़ चूका है पुराने जनता दल वाले अब मिल कर मोदी को साधने कि कोशिश करने जा रहे है और इस मुहीम में सबसे आगे बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार है, उनके अनुसार इस तथाकथित सेक्युलर फ्रंट में उनकी जनतादल यूनाइटेड ,मुलायम सिंह कि सपा ,लेफ्ट पार्टी, नवीन बाबू कि बीजू जनता दल,देवगोडा कि जनता दल सेक्युलर और दक्षिण भारत कि अम्मा सहित १४ दलो कि भारी -भरकम गठबंधन होने कि सम्भावना है। इस मुद्दे पर जनता दल यूनाइटेड कि तरफ से उनके महासचिव त्यागी साहब और नेताजी कि तरफ से राम गोपाल यादव एवं लेफ्ट कि तरफ से सीताराम येचुरी इस मुद्दे पर अन्य दलो से बातचीत में व्यस्त है, देखना होगा कि इस गठजोड़ का भविष्य कहा तक जाता है, मुलायम सिंह जी ने इसे "राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक मोर्चा " का नाम दिया है देखना होगा इस मोर्चे में एक दूसरे के धुर विरोधी दल साथ रहने के लिए कैसे सहमत होते है जैसे कि सपा और बसपा, जद -यू और राजद ,द्रमुक एवं अन्नाद्रमुख इत्यादि क्युकी इनका वजूद ही एक दूसरे के विरोध के ऊपर निर्भर करता है।
दूसरी तरफ ऐसा अनुमान है कि इस साल के आम चुनाव में छेत्रिय दलो को ४०% के आसपास का वोट मिल सकता है और अगर ऐसा होता है तो लगभग १३०-१४० सीटे इन दलो के पाले में आ सकती है लेकिन देखना होगा ये मोर्चा कब तक बनता है और अगर बनने में कामयाब हो जाता है तो कितना टिकता है क्युकी अगर परिस्थिति प्रधानमंत्री चुनने कि हुई तो आपस में मतभेद स्पष्ट दिखेगा और एक बार फिर अस्थिरथिरता कि तरफ हम बढ़ेंगे जो कि हम अब कि अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति के अनुरूप सहने में सक्षम नहीं है।
आज कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनकी खुद कि पार्टी बन कर खड़ी हो गई है एक १२५ से ज्यादा साल पुरानी पार्टी में काम करने के तरीको को बदलते बदलते एक दशक तो आराम से जायेगा और कांग्रेस इस समय उसी जख्म पर मरहम लगाने में व्यस्त है, राहुल गांधी भले देश जीत पाये या नहीं परन्तु ये तो तय है वो कांग्रेस से हार गए है और दूसरी तरफ मोदी बीजेपी जीत चुके है वरना जिस इंटरव्यू को कांग्रेस और राहुल गांधी अपने लिए एक मजबूत हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकते थे उसी कि बदौलत आज वो बैकफूट पर जा चुके है अर्णव के इंटरव्यू को देखने के बाद कुछभी ऐसा नहीं लगा जो राहुल देश को नया दे सकते है वैसे मै आश्वस्त हु कि मोदी जरुर इंटरव्यू देंगे और जब देंगे तब उसकी भी ब्रांडिंग जोर शोर से होगी और बीजेपी सुनिश्चित करेगी कि ये इंटरव्यू हर घर तक पहुचे और बस यही पर कांग्रेस पीछे हो जाती है और इसी कि कमी उन्हें खामियाजे कि तरह २०१४ के आम चुनाव में देखने को मिलेगा।
इस चुनाव में दल अपनी हार जीत का अनुमान पहले ही लगा चुके है अब वो अपनी हार से नुकसान को कम करने और जीत से फायेदे को बढ़ाने में व्यस्त है और इसी कड़ी में बीजेपी का MISSION-272 एक कदम है, कांग्रेस भी राहुल को सीधे तौर पर प्रोजेक्ट करने से बचना चाहती है क्युकी उन्हें भी हार का अनुमान जरुर है और अगर वो ऐसा करते है तो राहुल कि राजनीतिक छवि को बट्टा जरुर लगेगा जो किसी भी तरह से कांग्रेस के भविष्य के लिए नुकसानदेह है तो तैयार रहिये क्लाइमेक्स में जाने के लिए क्युकी चुनावी साल है कुछ भी हो सकता है अभी तो पूरी कहानी बाकि है कौन हीरो साबित होगा और कौन विलेन ये भविष्य कि गर्व में छोड़ दीजिये और मेरी तरह आप भी आशावादी रहने कि कोशिश कीजिये ।
अंशुमान श्रीवास्तवा।