क्या था वहाँ, जहाँ मै गया
क्यों खुदको और अपनों को अँधेरे में रखा
एक बात थी जो हर समय जुबान से निकल जाती है
क्या सर्दी में सच में मोहब्बत हो जाती है।
हर तरफ देख कर जब मैंने खुद को देखा
मै अकेला था किसको पता था
जिसे पता होना था वो तो व्यस्त था
मै वही हजरतगंज में अपने चाय में मस्त था।
बार बार पछताने का मन कर रहा था
और वहाँ से तुरत आने का मन कर रहा था
क्यों हो रही थी ऐसी उलझन पता नहीं
ऐ मेरे दिल ये तेरी खता नहीं।
अंशुमान श्रीवास्तवा
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