Saturday, 15 February 2014

"टाइमिंग वाले अरविन्द या अरविन्द वाली टाइमिंग"

'होगा वही जो "आप" रची रखा'

एक बार फिर सियासी हड़कम्प है अरविन्द भी राजनीती सिख गए है और इतनी निपूर्णता से सीखे है जिसकी वजह से भारत के दोनों प्रमुख सियासी दल के सियासत में उन्होंने भूचाल ला कर रख दिया है, एक IITian भले ही कुछ करे या न करे लेकिन अपना काम हमेशा से परफेक्ट टाइमिंग में  करता है   और इसके बहुत सारे उदाहरण है अन्ना  आंदोलन से लेकर कल के इस्तीफ़े तक उनकी हर चाल में असली राजनीती दिखती है, भले ही राहुल और मोदी को अपनी छवि बनाने के लिए बाहर के PR एजेंसियो का सहारा लेना पड़ा हो लेकिन अरविन्द अपने टाइमिंग से हमेशा विरोधियो पे भारी पड़े है।  

इस्तीफा शुक्रवार कि शाम को 9 बजे के आसपास होता है मतलब शुक्रवार कि रात से पूरा वीकेंड टीवी पर सिर्फ और सिर्फ आप और अरविन्द छाये रहेंगे, मतलब साफ़ है रविवार  को राहुल गांधी कि सबसे पहली सिर्फ महिला रैली प्रस्तावित है जितना कवरेज कांग्रेस और राहुल को इस रैली से उम्मीद होगी उन सभी उम्मीदों पर अरविन्द ने बट्टा लगा कर बता दिया कि असल राजनीती क्या है। 

वही दूसरी तरफ शनिवार को दिल्ली  में श्री अरुण जेटली, श्री समीर कोच्चर जो कि स्कॉच ग्रुप के चेयरमैन है कि एक किताब का विमोचन करेंगे जिसका नाम ही MODINOMICS  है इस किताब में बताया गया है कि किस तरह से मोदी ने गुजरात को अपने MODINOMICS से बेहतर बनाया है, बीजेपी भी इसे कारगार  मीडिया कवरेज के रूप में देखती होगी लेकिन पूरी पटकथा अरविन्द के अनुसार चली और राजनीति के द्रोणाचार्य परास्त हुए  एकलव्य के हाथो। 

आगे कि राजनीती परिस्थिति क्या होगी इसका विशलेषण विद्वानों को करने दीजिये आप और हम बस अरविन्द कि टाइमिंग पर फोकस रहते है देखते है क्या होता है
चाय में भिंगो कर बिस्कुट खाने वाली आदत अरविन्द के लिए फायदेमंद साबित होती है या कहीं  गीली बिस्कुट मुह में जाने से पहले निचे गिर जाती है सब टाइमिंग का खेल है देखते है कहाँ तक खेल पाते है। वैसे आगे के लिए आशावादी तो मै  हु ही.……।

अंशुमान श्रीवास्तवा  

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