जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जाता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मना करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है...!
वो पगली लड़की जिसकी कुछ औकात नहीं, कुछ बात नहीं
जिसके दिल में शायद इतने भारी- भरकम जज़्बात नहीं
जो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,
चुप चुप सारे व्रत रखती है, मुझसे न कभी कुछ कहती है,
जो पगली लडकी कहती है, "मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ",
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
ये कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
जब उस पगली लडकी के संग, हँसना फुलवारी लगता है,
तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है।
पर उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है...!
जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आंखों के नीचे छाइ दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो लल्ला दिन भर, कुछ सपनों का सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाने मे घबराते हैं,
जब साड़ी पहने लड़की का, इक फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब पूरे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
पर उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है...!
जब दूर दराज इलाको से, खत लिख कर लोग बुलाते है
जब हम ट्रेनो से जाते है, जब लोग हमे ले जाते है
जब हमको ग़ज़लों गीतो का, वो राजकुमार बताते है
जब हम महफिल की शान बने, इक प्रीत का गीत सुनाते है
कुछ आँखे धीरज खोती है, कुछ आँखे चुप-चुप रोती है
कुछ आँखे हम पर टिकी-टिकी गागर सी खाली होती है
जब सपने आँजे हुए लड़कियाँ, पता माँगने आती है
जब नर्म हथेली से पर्चों पर आटोग्राफ कराती है
जब यह सारा उल्लास हमे खुद से मक्कारी लगता है
तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है
पर उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है…. !!!
सौजन्य-श्री कुमार विश्वास
niceeeeeeeeeeeeeeeee...............!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeletesuperb....
ReplyDeleteEk pagli ladki ke bin jeena v bhari lagta hai, jab vo samne aati hai sabkuch feeka sa lagta hai, jab vo durr chali jati hai to jeena muskil sa lagta hai "wo pagli ladki"
ReplyDeleteUttam
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