Sunday, 13 April 2014

"गुलजार की गुलजारियत"

गुलजार को हिन्दी सिनेमा का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार मिलने पर बहुत बहुत बधाई, उनके कुछ बेहतरीन गजल को मैने एक धागे मे पिरोने की कोशिश की हैं, इसका लुफ्त उठाए:-

मैंने तुम्हारे समंदर भी देखे हैं, 
नीले रंग के दूर-दूर तक फैले हुये, 
कई लहरें आती हैं उमड़ती हुयी और किनारों पर आकर लौट जाती हैं.... 
एक समंदर और है मेरे अंदर कहीं, 
जो हर लम्हा हिलोरे मारता है, 
उसका कोई किनारा नहीं, 
उसकी सारी नमकीन लहरें मैं भारी मन से पी जाया करता हूँ, 
मुझे अपना समंदर चुनने की आज़ादी तो है न...
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जाने क्यूँ आज कांप रहे हैं हाथ मेरे, 
तुम्हारे सपनों के बाग डरा से रहे हैं मुझे,
 कैसे इन रंग-बिरंगे सपनों पर मैं अपने गंदले रंग के खंडहर लिख दूँ...
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गरीबी सिर्फ सड़कों पर नहीं सोती,
 कुछ लोग दिल के भी गरीब होते हैं 
अक्सर उनके बिना छत के मकानों में आसमां से दर्द टपकता है..
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हर दफ़े निखर निखर आता हूँ ग़मों से, 
हर दफ़े एक नया ग़म पनप आता है...
 डर है कहींदर्दका 'एडिक्ट' न हो जाऊं! 
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 तेरे जैसा लिखना-पढ़ना मुझे कभी न आया, 
न दिन ढला, न रात उगी, न चाँद शरमाया,
 निर- मूरख मैं तुझको पढ़- पढ़ बार-बार हर्षाया,
 मुझे भी तरकीब बता 'गुलज़ार' हुनर कहाँ से लाया?


 अंशुमन श्रीवास्तव

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