शोना मोहापात्रा ने सत्यमेव जयते में गाते वक़्त कभी सोचा न होगा की रूपैये की हालत इतनी ख़राब हो जाएगी , सरकार ने रुपये को संभालने के नए नए उपाए आये दिन मार्केट में उतार रही है और उसमे सबसे नया वाला है सोने को बेचना है इस फैसले को सुन कर मुझे तो ये लगता है की हमारी हालत एक शराबी की तरह हो गई है जो पीने की आदत से मजबूर होकर अपने ही घर की कीमती सामानों को बाजार में बेचता है जिससे उसके पीने की हवस पूरी हो सके।
वाह रे सरकार जिस देश की बागडोर एक काबिल अर्थशास्त्री के हाथ में हो और जिस देश में चिदंबरम जैसे (नाम मात्र के ही सही) अर्थशास्त्री हो उस देश में सरकार अपनी विफलता का
पूरा ठीकरा RBI के गवर्नर सुब्बाराव के माथे पर मड कर बचने की पूरी कोशिश करती है मगर अफ़सोस
देश के काबिल मंत्री महोदय को यह भूल जाते है की देश थोड़ा बहुत ही सही समझदार हो गया है।
आज कल हमारे न्यूज़ चैनल में जितने भी anchor है उनको अपने एक घंटे को बिताने के लिए "NDA के 6 साल Vs UPA के 9 साल " का मुद्दा उठाते है और उसी वक़्त हम और आप फैसला करने में व्यस्त हो जाते है की इस दौड़ में बेहतर कौन है ? आज कल के इस आधुनिक युग में आम लोग
बहुत तेजी से सरकार के फैसले जो उनको कही न कही उनको प्रभावित करते है उसपर अपनी राय जरुर पेश करते है और इसको व्यक्त करने के लिए आज बहुत सारे मंच उपलब्ध है फिर भी कही न कही सरकार जनता की जरूरतों को पहचानने में बहुत भूल कर रही है और इसके फलस्वरूप अपनी छवि धूमिल कर रही है।
रुपैये का गिरना बहुत चिंता का विषय है परन्तु इसपर भी फुटबॉल मैच सरकार और विपक्ष के बीच चल रहा है एक कहता है इसमें ९० फीसदी हाथ विदेशी पूँजी डॉलर का पलायन है और तर्क
के रूप में दुनिया के सभी विकासशील देशो की पंगु हो रही पूँजी का दिया जा रहा है वही दूसरी तरफ विपक्ष सरकार की नीतियों को दिवालियापन बताते हुए कहती है की "सरकार हमें चीयर लीडर्स न समझे कि हम उनके हर कदम पर तालिया बजाये" .
रुपये का गिरना सिर्फ और सिर्फ न्यूज़ चैनल्स में बैठे हुए anchors के लिए लिए दुखदायक नहीं है
अपितु हम और आप जैसे लोग जो विदेशी पूँजी पर कही न कही आश्रित है उनके लिए बहुत हानिकारक
है आकड़े बताते है की हर एक रुपये की गिरावट से हमारे ऊपर करीब 8000 करोड़ का कर्ज आ जाता है , हमारी पूँजी दुनिया के सभी विकासशील देशो की पूँजी में सबसे ख़राब स्तिथी में है हमारा चालू खाता
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 -12 के लिए चालू खाता घाटा $ 782 हजार करोड़ था. यह वर्ष 2012-13 में $ 878 हजार करोड़ हो गया जो की 9.6 फीसदी से ऊपर है । इसका साफ़ मतलब यह है की हम विदेशो से सामान तो मंगा रहे है परन्तु हमारा अपना माल विदेशो में बिकने लायक नहीं है जिसके फलस्वरूप हम विदेशी बाजार से कुछ खास कमा नहीं पा रहे है, अगर हालत ऐसी रही तो निश्चित ही हमें अपनी अर्थव्यवस्था को भगवान के भरोसे छोड़ कर उनके मंदिर और मठों में जो पैसा है उससे अपनी जरूरतों को पूरा करना होगा।
अपितु हम और आप जैसे लोग जो विदेशी पूँजी पर कही न कही आश्रित है उनके लिए बहुत हानिकारक
है आकड़े बताते है की हर एक रुपये की गिरावट से हमारे ऊपर करीब 8000 करोड़ का कर्ज आ जाता है , हमारी पूँजी दुनिया के सभी विकासशील देशो की पूँजी में सबसे ख़राब स्तिथी में है हमारा चालू खाता
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 -12 के लिए चालू खाता घाटा $ 782 हजार करोड़ था. यह वर्ष 2012-13 में $ 878 हजार करोड़ हो गया जो की 9.6 फीसदी से ऊपर है । इसका साफ़ मतलब यह है की हम विदेशो से सामान तो मंगा रहे है परन्तु हमारा अपना माल विदेशो में बिकने लायक नहीं है जिसके फलस्वरूप हम विदेशी बाजार से कुछ खास कमा नहीं पा रहे है, अगर हालत ऐसी रही तो निश्चित ही हमें अपनी अर्थव्यवस्था को भगवान के भरोसे छोड़ कर उनके मंदिर और मठों में जो पैसा है उससे अपनी जरूरतों को पूरा करना होगा।
देश में जो भ्रस्टाचार का दीमक लग गया है उससे निवेशको का विश्वास अपने सबसे निचले अस्तर पर है और
देशी निवेशक भी अपने पैसे विदेशो में ज्यादा लगा रहे है वजह साफ़ है की सरकार उन सभी को विश्वास दिलाने में पूरी तरह से ना कामयाब साबित हुई है , नसिर्फ आर्थिक मोर्चे पर अपितु कूटनीतिक स्तर पर भी सरकार पूरी तरह से विफल हुई है चाहे वो पाकिस्तान का मसला हो चीन का हो या फिर ईरान से कच्चे तेल निर्यात का मसला हो हम पिछले कुछ वर्षो से दुनिया के सामने बहुत कमजोर दिखाई दिए है।
आशा है अमेरिका और सीरिया के बीच के आनेवाले युद्ध से पहले हम कुछ ऐसे ठोस आर्थिक कदम उठाए जिससे हमारा रुपैया इस युद्ध के परिणाम स्वरुप और ना गिरे क्युकी निश्चित है की इस युद्ध के कारन कच्चे तेल की कीमत बेतहाशा ऊपर जाएँगी जिससे हमारा चालू वित्तीय घाटा और बढेगा और परिणाम स्वरुप हमारी पूँजी डॉलर के सामने और कमजोर होगी।
वैसे सरकार के पास वक़्त बहुत कम है देश से ज्यादा अपनी फिकर है इसीलिए वो खाद्य सुरक्षा कानून को हर कीमत पर लागु कर के इसे अपने लिए ट्रम्प कार्ड के रूप में चल रही है और आशा कर रही है की इसी की बदौलत वो दोबारा सत्ता के सिंघासन को प्राप्त कर सकती है परन्तु इसकी आशा कम ही दिख रही है।
देश और रुपये को बचने के लिए अब तो किसी शहंशा रूपी बोल बच्चन अमिताभ बच्चन की ही जरुरत पड़ेगी आशा करता हूँ देश को वो एंग्री यंग मैन जल्द से जल्द मिल जाये और रूपया को संभाल ले वैसे हमारे नए RBI गवर्नर के पहले भाषण से कुछ उम्मीद की जा सकती है, मै उनको लेकर बहुत ज्यादा आश्रित एवं आशावादी हूँ आगे रघुराम जी की मर्जी…………………।
अंशुमन श्रीवास्तव
देशी निवेशक भी अपने पैसे विदेशो में ज्यादा लगा रहे है वजह साफ़ है की सरकार उन सभी को विश्वास दिलाने में पूरी तरह से ना कामयाब साबित हुई है , नसिर्फ आर्थिक मोर्चे पर अपितु कूटनीतिक स्तर पर भी सरकार पूरी तरह से विफल हुई है चाहे वो पाकिस्तान का मसला हो चीन का हो या फिर ईरान से कच्चे तेल निर्यात का मसला हो हम पिछले कुछ वर्षो से दुनिया के सामने बहुत कमजोर दिखाई दिए है।
आशा है अमेरिका और सीरिया के बीच के आनेवाले युद्ध से पहले हम कुछ ऐसे ठोस आर्थिक कदम उठाए जिससे हमारा रुपैया इस युद्ध के परिणाम स्वरुप और ना गिरे क्युकी निश्चित है की इस युद्ध के कारन कच्चे तेल की कीमत बेतहाशा ऊपर जाएँगी जिससे हमारा चालू वित्तीय घाटा और बढेगा और परिणाम स्वरुप हमारी पूँजी डॉलर के सामने और कमजोर होगी।
वैसे सरकार के पास वक़्त बहुत कम है देश से ज्यादा अपनी फिकर है इसीलिए वो खाद्य सुरक्षा कानून को हर कीमत पर लागु कर के इसे अपने लिए ट्रम्प कार्ड के रूप में चल रही है और आशा कर रही है की इसी की बदौलत वो दोबारा सत्ता के सिंघासन को प्राप्त कर सकती है परन्तु इसकी आशा कम ही दिख रही है।
देश और रुपये को बचने के लिए अब तो किसी शहंशा रूपी बोल बच्चन अमिताभ बच्चन की ही जरुरत पड़ेगी आशा करता हूँ देश को वो एंग्री यंग मैन जल्द से जल्द मिल जाये और रूपया को संभाल ले वैसे हमारे नए RBI गवर्नर के पहले भाषण से कुछ उम्मीद की जा सकती है, मै उनको लेकर बहुत ज्यादा आश्रित एवं आशावादी हूँ आगे रघुराम जी की मर्जी…………………।
अंशुमन श्रीवास्तव
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