मैं कायस्थ कुलोदभव,
मेरे पुरखो ने इतना ढाला,
मेरे तन के लोहू में हैं ,
पचहत्तर प्रतिशत हाला,
पुश्तैनी अधिकार मुझे हैं,
मदिरालय के आँगन में ,
मेरे दादा, परदादा के हाथ,
बिकी थी मधुशाला ।
मुसलमान और हिन्दू दो हैं,
एक मगर उनका प्याला,
एक मगर उनका मदिरालय,
एक मगर उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक,
मंदिर, मस्जिद में जाते ,
बैर बढ़ाते मंदिर, मस्जिद,
मेल कराती मधुशाला ।
आज हरिवंश राय बच्चन की कविता लिखने का मन हुआ तो लिख दिया। वैसे भी आज के राजनीतिक माहौल में उनकी यह कविता बहुत उचित है। बाकि कुछ कहना नहीं है कविता बहुत कुछ कह रही है…….
अंशुमन श्रीवास्तव
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