Saturday, 17 August 2013

"मोदीमय स्वतंत्रता दिवस"

हमारी आज़ादी को सठियाए ६ वर्ष हो गए है और  जो नीति एवं नियमों पे हम हाल के वर्षो में चल रहे है उससे तो ऐसा लगता है हम बहुत जल्द रिटायर भी हो जायेंगे।  १५ अगस्त का दिन आमतौर पे तो राष्ट्रीयता के पर्व के उपलक्ष्य में मनाया जाता है लेकिन चूकी चुनाव का साल आने वाला है इसलिए ये पर्व महज अपनी अपनी बड़ाई एवं दुसरे की बुराई करने का पर्व बन कर रह गया है।  उसपर से हमारे आडवानी जी ने जो नसीहत दे डाली है वो किसी भी राजनेता और खास कर मोदी जी को जरुर चुभी होगी।  एक बार फिर से भीष्म पितामह कृष्ण  वाला कार्य करने में वयस्थ हो गए और अघोषित अर्जुन को ये बात लग गई।  ऐसा न हो महाभारत की तर्ज पे हमारे भीष्म पितामह की समाधी अर्जुन के हाथों  रच जाये और हस्तिनापुर मिले न मिले खामखा उनकी बलि चढ़ जाये।


श्री मनमोहन सिंह जो की एक काबिल अर्थशास्त्री रहे है उनके प्रधानमंत्री रहते हुए भारतवर्ष में कल का दिन  BLACK FRIDAY के रूप में बीता और ये भी तब हुआ जब 15 अगस्त की छुट्टी के बाद बाजार खुला।  आशा तो थी की प्रधानमंत्री के भाषण से बाज़ार का माहौल बहुत अच्छा रहेगा परन्तु अपने लालकिला के 10 वे  और शायद अंतिम संबोधन  में राष्ट्र के सामने न सिर्फ जवलंत शील मुद्दों को रखने में विफल हो गए बल्कि ये सुन कर बाज़ार भी नहीं संभला और एकबार फिर गिर गया।  भाषण में आसमान छुते महंगाई, भ्रष्ट्राचार एवं आर्थिक विफलताओ का कोई जिक्र नहीं था। और न ही इनसब कारणों को काबू करने के लिए सरकार  क्या कदम उठा रही, आशा तो थी की जाते जाते मनमोहन जी एक बार फिर से 1991 का करिश्मा दोहरा दे वैसे भी देश की हालत 1991 की तरह ही हो गई है और जरुरत है कुछ ऐसे ही आर्थिक सशक्तिकरण की लेकिन ये हमारे देश की बदकिस्मती है की एक काबिल अर्थशास्त्री भी अपनी राजनीतिक मजबूरियों के कारण देश की हालत बदलने में नाकाम हुए है।  

वही दूसरी तरफ भुज के लालन कॉलेज ग्राउंड से एक और राजनेता अपना भाषण दे रहे थे और पुरे देश की मीडिया ने उस संबोधन को ऐसे दिखाया और ऐसे उसपर विवाद किया जैसे वो भाषण लालन कॉलेज से नहीं लालकिला से हुआ हो, उनके भाषण की हर बारीकियों पे N.K. SINGH और अभय दुबे जैसे पत्रकार ऐसे विवेचन कर रहे थे जैसे की नरेन्द्र मोदी का वो भाषण भारत के इतिहास का सबसे आप्तिजनक भाषण मे से एक हो और इस भाषण से उन्होंने देश के खिलाफ कुछ गलत बोल दिया हो, इतने तकलीफ में वे लोग इसपर बहस कर रहे थे जैसे किसी ने उनके नासूर को कुरेद कर ज़ख्म को फिर से हरा कर दिया हो। ये देश की मीडिया ही है जो सारे 28 राज्य और ७ केन्द्रशाषित प्रदेश को भूल कर सिर्फ गुजरात में नरेन्द्र मोदी के भाषण को ही सबसे जयादा फुटेज दी और डॉ मनमोहन सिंह के भाषण से जयादा विवेचना की, और आश्चर्य है उसी मीडिया के लोग मोदी पर ही ये आरोप लगाये जा रहे थे कि वो रेस में खुद को आगे कर रहे है।  

वही नरेन्द्र मोदी खुद भी अपने भाषण में गुजरात की कामयाबियो से ज्यादा केंद्र सरकार की विफलताओ को गिना कर लालकृष्ण आडवानी की तरह ही प्रधानमंत्री पद के मोह में पड़े दिखाई दिए। उनके भाषण की शुरुआत में ही केंद्र सरकार की निंदा करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी, अच्छा है जब कोई राजनेता राजनीती करता है लेकिन मोदी साहब ने तो ठान ही लिया है की हर मंच से वो अपनी दावेदारी और मजबूत करेंगे चाहे वो हैदराबाद की उनकी रैली हो या लालन कॉलेज की। साथ ही कुछ फूटकर नेताओ को अपने पाले में लेने का काम भी वो बहुत अच्छे तरह से कर रहे है कल ही हुए कांग्रेस नेता एवं लालू यादव के साले साधू यादव से मुलाकात के बाद साधू यादव ने उनको राहुल गाँधी से तुलना कर उन्हें सबसे बेहतर बता कर मीडिया को नसीहत दे डाली की "आप लोग बालू से तेल निकाल रहे है" . 

आज ही प्रीती पंवार जो की one India News की पत्रकार है उन्होंने अपने पेपर में कुछ कारण गिनाये है की मोदी ने भुज के लालन कॉलेज से ही क्यों स्वतंत्रता दिवस का संबोधन किया उसके तीन प्रमुख कारण है वो है 
 वो कुछ मुख्यमंत्रियों में से एक है,जो कभी भी राजधानी अहमदाबाद में स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाते अपितु हर साल विभिन्न जिला मुख्यालयों में स्वतंत्रता दिवस की सभा का संबोधन करते है। इससे राज्य में MORE GOVERNANCE LESS GOVERNMENT का नारा और बुलंद होता है।
 

दूसरा कारण यह है कि पाकिस्तान की सीमा भुज से बहुत नजदीक है।  भुज शहर कच्छ (भारत पाकिस्तान सीमा) से 50-60 किलोमीटर की दूरी पे स्थित है,पाकिस्तान के संघर्ष विराम उल्लंघन के बाद भुज काफी संवेदनशील है, और अपनी आवाज पड़ोसी देश तक पहुँचने और मातृभूमि के लिए देशभक्ति व्यक्त करने के लिए सबसे अच्छा स्थान था, उन्होंने कहा, "मेरी आवाज पहले पाकिस्तान और बाद में दिल्ली पहुंचता है, ये उन्होंने 25,000 युवा भीड़ के सामने कहा। 

तीसरा प्रमुख कारण गुजरात का विकास और प्रगति है, हम सभी को 26 जनवरी, 2001 (भारत के 51 वें गणतंत्र दिवस) पर, भुज में 7.7 की भीषण भूकंप याद है और इससे परिणाम स्वरुप
20, 000 लोगों के आसपास मारे गए 1, 67, 000 घायल हो गए और लगभग 4, 00, 000 घरों (रिकॉर्ड के अनुसार)बर्बाद हो गए .2001 के बाद से तबाह भुज पूरी तरह नरेंद्र मोदी के शासन क्षमताओं से पुनर्वास किया गया है. लालन कॉलेज भुज से भाषण दे रहे मोदी गर्व महसूस कर रहे थे। 

 
भुज में हुए तबाही के बाद के विकास को नरेन्द्र मोदी ने
कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने जो भारतीय अर्थव्यवस्था को 'खंडहर' में बदला है उसके विपरीत किया हुआ एक सक्षम कदम के रूप में गिन कर अपने आप को एक अग्रिम पांति में लाकर खड़ा कर दिया है।

आशा है आगे से कोई भी राष्ट्रीय पर्व महज एक राजनीतिक अखाडा बन कर न रह जाये,
नियमित हर दिन तो ऐसा होता ही है राजनेता कुछ देश का सम्मान कर इन राष्ट्रिय पर्व को सौहार्द के वातावरण में मनाने का अवसर हम नागरिको को प्रदान करे तो अच्छा होगा।

अंशुमन श्रीवास्तव 
 


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