Thursday, 22 August 2013

मंदिर मस्जिद बैर कराते मेल कराती मधुशाला............




                                                       



                                                             मैं कायस्थ कुलोदभव,
                                                          मेरे पुरखो ने इतना ढाला,
                                                              मेरे तन के लोहू में हैं ,
                                                          पचहत्तर प्रतिशत हाला,
                                                          पुश्तैनी अधिकार मुझे हैं,
                                                           मदिरालय के आँगन में ,
                                                          मेरे दादा, परदादा के हाथ,
                                                               बिकी थी मधुशाला ।



                                                             मुसलमान और हिन्दू दो हैं,
                                                             एक मगर उनका प्याला,
                                                             एक मगर उनका मदिरालय,
                                                             एक मगर उनकी हाला,
                                                             दोनों रहते एक न जब तक,
                                                             मंदिर, मस्जिद में जाते ,
                                                             बैर बढ़ाते मंदिर, मस्जिद,
                                                              मेल कराती मधुशाला ।

                      आज हरिवंश राय बच्चन की कविता लिखने का मन हुआ तो लिख दिया।  वैसे भी आज के राजनीतिक माहौल में उनकी यह कविता बहुत उचित है।  बाकि कुछ कहना नहीं है कविता बहुत कुछ कह रही है…….


अंशुमन श्रीवास्तव


Saturday, 17 August 2013

"मोदीमय स्वतंत्रता दिवस"

हमारी आज़ादी को सठियाए ६ वर्ष हो गए है और  जो नीति एवं नियमों पे हम हाल के वर्षो में चल रहे है उससे तो ऐसा लगता है हम बहुत जल्द रिटायर भी हो जायेंगे।  १५ अगस्त का दिन आमतौर पे तो राष्ट्रीयता के पर्व के उपलक्ष्य में मनाया जाता है लेकिन चूकी चुनाव का साल आने वाला है इसलिए ये पर्व महज अपनी अपनी बड़ाई एवं दुसरे की बुराई करने का पर्व बन कर रह गया है।  उसपर से हमारे आडवानी जी ने जो नसीहत दे डाली है वो किसी भी राजनेता और खास कर मोदी जी को जरुर चुभी होगी।  एक बार फिर से भीष्म पितामह कृष्ण  वाला कार्य करने में वयस्थ हो गए और अघोषित अर्जुन को ये बात लग गई।  ऐसा न हो महाभारत की तर्ज पे हमारे भीष्म पितामह की समाधी अर्जुन के हाथों  रच जाये और हस्तिनापुर मिले न मिले खामखा उनकी बलि चढ़ जाये।


श्री मनमोहन सिंह जो की एक काबिल अर्थशास्त्री रहे है उनके प्रधानमंत्री रहते हुए भारतवर्ष में कल का दिन  BLACK FRIDAY के रूप में बीता और ये भी तब हुआ जब 15 अगस्त की छुट्टी के बाद बाजार खुला।  आशा तो थी की प्रधानमंत्री के भाषण से बाज़ार का माहौल बहुत अच्छा रहेगा परन्तु अपने लालकिला के 10 वे  और शायद अंतिम संबोधन  में राष्ट्र के सामने न सिर्फ जवलंत शील मुद्दों को रखने में विफल हो गए बल्कि ये सुन कर बाज़ार भी नहीं संभला और एकबार फिर गिर गया।  भाषण में आसमान छुते महंगाई, भ्रष्ट्राचार एवं आर्थिक विफलताओ का कोई जिक्र नहीं था। और न ही इनसब कारणों को काबू करने के लिए सरकार  क्या कदम उठा रही, आशा तो थी की जाते जाते मनमोहन जी एक बार फिर से 1991 का करिश्मा दोहरा दे वैसे भी देश की हालत 1991 की तरह ही हो गई है और जरुरत है कुछ ऐसे ही आर्थिक सशक्तिकरण की लेकिन ये हमारे देश की बदकिस्मती है की एक काबिल अर्थशास्त्री भी अपनी राजनीतिक मजबूरियों के कारण देश की हालत बदलने में नाकाम हुए है।  

वही दूसरी तरफ भुज के लालन कॉलेज ग्राउंड से एक और राजनेता अपना भाषण दे रहे थे और पुरे देश की मीडिया ने उस संबोधन को ऐसे दिखाया और ऐसे उसपर विवाद किया जैसे वो भाषण लालन कॉलेज से नहीं लालकिला से हुआ हो, उनके भाषण की हर बारीकियों पे N.K. SINGH और अभय दुबे जैसे पत्रकार ऐसे विवेचन कर रहे थे जैसे की नरेन्द्र मोदी का वो भाषण भारत के इतिहास का सबसे आप्तिजनक भाषण मे से एक हो और इस भाषण से उन्होंने देश के खिलाफ कुछ गलत बोल दिया हो, इतने तकलीफ में वे लोग इसपर बहस कर रहे थे जैसे किसी ने उनके नासूर को कुरेद कर ज़ख्म को फिर से हरा कर दिया हो। ये देश की मीडिया ही है जो सारे 28 राज्य और ७ केन्द्रशाषित प्रदेश को भूल कर सिर्फ गुजरात में नरेन्द्र मोदी के भाषण को ही सबसे जयादा फुटेज दी और डॉ मनमोहन सिंह के भाषण से जयादा विवेचना की, और आश्चर्य है उसी मीडिया के लोग मोदी पर ही ये आरोप लगाये जा रहे थे कि वो रेस में खुद को आगे कर रहे है।  

वही नरेन्द्र मोदी खुद भी अपने भाषण में गुजरात की कामयाबियो से ज्यादा केंद्र सरकार की विफलताओ को गिना कर लालकृष्ण आडवानी की तरह ही प्रधानमंत्री पद के मोह में पड़े दिखाई दिए। उनके भाषण की शुरुआत में ही केंद्र सरकार की निंदा करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी, अच्छा है जब कोई राजनेता राजनीती करता है लेकिन मोदी साहब ने तो ठान ही लिया है की हर मंच से वो अपनी दावेदारी और मजबूत करेंगे चाहे वो हैदराबाद की उनकी रैली हो या लालन कॉलेज की। साथ ही कुछ फूटकर नेताओ को अपने पाले में लेने का काम भी वो बहुत अच्छे तरह से कर रहे है कल ही हुए कांग्रेस नेता एवं लालू यादव के साले साधू यादव से मुलाकात के बाद साधू यादव ने उनको राहुल गाँधी से तुलना कर उन्हें सबसे बेहतर बता कर मीडिया को नसीहत दे डाली की "आप लोग बालू से तेल निकाल रहे है" . 

आज ही प्रीती पंवार जो की one India News की पत्रकार है उन्होंने अपने पेपर में कुछ कारण गिनाये है की मोदी ने भुज के लालन कॉलेज से ही क्यों स्वतंत्रता दिवस का संबोधन किया उसके तीन प्रमुख कारण है वो है 
 वो कुछ मुख्यमंत्रियों में से एक है,जो कभी भी राजधानी अहमदाबाद में स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाते अपितु हर साल विभिन्न जिला मुख्यालयों में स्वतंत्रता दिवस की सभा का संबोधन करते है। इससे राज्य में MORE GOVERNANCE LESS GOVERNMENT का नारा और बुलंद होता है।
 

दूसरा कारण यह है कि पाकिस्तान की सीमा भुज से बहुत नजदीक है।  भुज शहर कच्छ (भारत पाकिस्तान सीमा) से 50-60 किलोमीटर की दूरी पे स्थित है,पाकिस्तान के संघर्ष विराम उल्लंघन के बाद भुज काफी संवेदनशील है, और अपनी आवाज पड़ोसी देश तक पहुँचने और मातृभूमि के लिए देशभक्ति व्यक्त करने के लिए सबसे अच्छा स्थान था, उन्होंने कहा, "मेरी आवाज पहले पाकिस्तान और बाद में दिल्ली पहुंचता है, ये उन्होंने 25,000 युवा भीड़ के सामने कहा। 

तीसरा प्रमुख कारण गुजरात का विकास और प्रगति है, हम सभी को 26 जनवरी, 2001 (भारत के 51 वें गणतंत्र दिवस) पर, भुज में 7.7 की भीषण भूकंप याद है और इससे परिणाम स्वरुप
20, 000 लोगों के आसपास मारे गए 1, 67, 000 घायल हो गए और लगभग 4, 00, 000 घरों (रिकॉर्ड के अनुसार)बर्बाद हो गए .2001 के बाद से तबाह भुज पूरी तरह नरेंद्र मोदी के शासन क्षमताओं से पुनर्वास किया गया है. लालन कॉलेज भुज से भाषण दे रहे मोदी गर्व महसूस कर रहे थे। 

 
भुज में हुए तबाही के बाद के विकास को नरेन्द्र मोदी ने
कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने जो भारतीय अर्थव्यवस्था को 'खंडहर' में बदला है उसके विपरीत किया हुआ एक सक्षम कदम के रूप में गिन कर अपने आप को एक अग्रिम पांति में लाकर खड़ा कर दिया है।

आशा है आगे से कोई भी राष्ट्रीय पर्व महज एक राजनीतिक अखाडा बन कर न रह जाये,
नियमित हर दिन तो ऐसा होता ही है राजनेता कुछ देश का सम्मान कर इन राष्ट्रिय पर्व को सौहार्द के वातावरण में मनाने का अवसर हम नागरिको को प्रदान करे तो अच्छा होगा।

अंशुमन श्रीवास्तव 
 


Saturday, 10 August 2013

राजनेतिक संवेदनहीनता !!!!

आजकल बादल पुणे में बहुत बरस रहे है और इन्ही बादलो  की तरह राजनीती भी कुछ ऐसी ही हो गई है जो हर मौके दस्तूर पर बिना पूर्व सूचना दिए बरस रही है और ऐसी बरस रही है जिससे क्या नेता क्या अभिनेता या क्या सरहदों पे रक्षा कर रहे सैनिक, सब खूब भींग रहे है और इन बारिशों  में सबसे ज्यादा उन नेताओ की फसल लहरा रही है जो हमेशा से इन्ही सब मौके की तलाश में रहते है लेकिन इन बारिशो में वो ये भूल ही जाते है की फसल को नुकसान भी सबसे ज्यादा बारिश से ही होता है।

ठीक ऐसा ही हमारे सुशाशन बाबु के साथ हो रहा है, २३ बच्चों  की मौत पे जाने का समय भले न हो, ३ नौजवान सैनिको की चिताओ  को सलाम करने का समय भले न हो लेकिन सेवैयाँ  खाने का समय जरुर है और बात बात पर बीजेपी और राजद को एकसाथ दिखने का प्रयास करते रहने का
 मगर सुशानन बाबु आप ये भूल ही जाते है की आप कौन सी राजनीती  कर रहे है ये सब को पता है और समाज की इस धरा का समर्थन कभी भी  किसी राजनीतिक दल को सत्ता की चासनी में डूबने
का सुख नहीं  दे पाया है और अगर इस सत्य को आप जितनी जल्दी समझ ले उतना ही ये बिहार की
जनता और खास कर  आपके लिए फायेदेमंद   होगा।

आजकल C ग्रेड को लेकर बड़ा होहल्ला हो रहा है , कही ऐसा न हो जाये इंग्लिश अल्फाबेट से C  अपना नाता तोड़ ले और रूठ जाये क्यूकी  हर कोई C  को बड़ा बुरा मान रहा है।  पता नहीं उमा भारती जी
को C अल्फाबेट से क्या दिक्कत हो गई है वैसे दिग्विजय सिंह जी का नाम तो D  से आता है फिर भी
उन्होंने रजा मुराद को C  ग्रेड का अभिनेता क्या बोल दिया हर कोई एकदूसरे को C  शब्द से पुकार रहा है
इसमें मेरा एक दोस्त है Siddh  जिसे हम CD  बुलाते है वो बड़े तकलीफ में है , वो तो ये सुन कर उमाजी
को बहुत बुरा भला कह रहा था वैसे उसपे रजा मुराद फिर से जींह  की तरह एकबार फिर प्रकट हुए और
उल्टा उन्होंने उमाजी को C  की संज्ञा दी , बहुत बुरा हो रहा है अगर मै  C  की जगह होता तो दोनों पर
मानहानि का मुकद्दमा जरुर करता।

दूसरी तरफ एक शरीफ़ साहब है नाम के बिलकुल उलटे उनका नाम रखते वक़्त जरुर उनकी अम्मी ने अमावस में
चाँद के सपने देखे होंगे।  जो बोलते है उसके उलट हमेशा ही करते है चाहे वो कारगिल हो या हाल  में हुए
कश्मीर की घटना , और ऊपर से हमारे अंटोनी  साहब १२१ करोड़ की देश के वो रक्षा मंत्री अपनी ही पार्टी से
डरते फिरते रहते है और आलम ये है की रोज नए नए बयान देते है वो भी पुराने वाले का उल्टा ऐसा लगता
है वो बचपन की बातों को बड़ा संजीदगी से लिया है की बीती बातों  को भूल कर हमेशा कुछ नया बोले।
इनसब के ऊपर हमारे सिंह साहब !!!!!! अब इनपे कुछ लिखने के मुड में मै नहीं हु आप सब खुद ही
समझदार  है।

राजनीती बड़ी अच्छी बात होती है और जब राजनेता करते है तब अच्छा भी लगता है क्युकी उनके पास कोई
और काम भी नहीं होता है  लेकिन आशा करता हूँ कुछ संवेदनशीलता वो बरते तभी उन्हें करने में मजा आयेगा और हमें
देखने में , मेरा आशावादी रुख अभी भी बहुत स्पस्ट है।


अंशुमन श्रीवास्तव    

Saturday, 3 August 2013

नौकरशाही!! नेताओं की या समाज की???

गौतमबुद्ध नगर की SDM  श्रीमती दुर्गा शक्ति नागपाल जो २०१० कैडर की IAS आधिकारी है और जिनके ऊपर लगाए गए आरोप " एक  धार्मिक स्थल की बनती हुई दीवार को गिराने का है" जिससे उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने की आशंका थी और सत्तारुड पार्टी के नेता  के अनुसार किया गया एक बहुत ही दुरदार्शिता से परिपूर्ण फैसला है जिसके  लिए प्रदेश सरकार प्रशंशा की  पात्र  है , और इससे प्रदेश सरकार  ने पुरे उत्तरप्रदेश को दंगे की आग में झुलसने से बचा लिया है, लेकिन इस फैसले को करते हुए   प्रदेश सरकार  यह भूल गई की आज समुचा  देश उस युवा SDM जो अवैध रेत की खनन को रोकने में बहुत हद तक कामयाबी पाई  उससे पूरी तरह से जुड़ा  हुआ है.

इस फैसले से एक बार फिर ये साबित हो गया की नेता अपने हित के आगे किसी भी नौकरशाह चाहे वो श्रीमती दुर्गा शक्ति हो अशोक खेमका हो संजीव चतुर्वेदी हो या सतेन्द्र दुबे हो याफिर बहुत से अन्य किसीको भी कुछ नहीं समझते ,हमारे जैसे आम लोग हमेशा से यही समझते थे की एक जिले में IAS से ज्यादा  पॉवर किसी की भी नहीं  होती है लेकिन विडम्बना ये है की आज एक IAS उन नेताओ के गुलाम बन कर रह गए है जो चुने जाने बाद अपने आप को उस क्षेत्र  का राजा  समझने लगते है जबकि वो ये पूरी तरह से भूल जाते है की उनकी जबाबदारी सीधे जनता से होती है.

घटना जिस जिले से है वहाँ रोजाना  इस अवैध्य  खनन से ४  करोड़ का कारोबार होता है और राशी इतनी बड़ी है जिसके सामने रोकने के सारे उपाए छोटे हो जाते है इसके फलस्वरूप अनुमानित राशी सालाना US  $ 17 मिलियन की हो जाती है, इसको रोकने के लिए सरकार  ने एक SPECIAL MINING SQUAD का गठन किया जो पुरे तरीके से इसको रोकने में नाकाम हो गया था उस वक़्त श्रीमती दुर्गाशक्ति नागपाल ने 297 से भी जयादा ट्रक को पकड़ा और उनसे करीब 82. 34 लाख की राशी दंड के रूप में वसूल किया और करीब 22 से ज्यादा मुकद्दमे दर्ज कराये और करीब 17  लोग के खिलाफ FIR दर्ज किया और 23 जुलाई को कड़े शब्दों में उन सभी खनन माफियाओ के खिलाफ आवाज बुलंद की इसमें उनके ही एक सहयोगी आशीष कुमार को अगले ही दिन बर्खास्त कर दिया गया और सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने  की आड़ में कुछ दिनों के बाद उन्हें भी बर्खास्त कर दिया गया।

इसी प्रकार अशोक खेमका को पिछले 22 वर्षो से एक वरिष्ठ IAS अधिकारी है और उनका तबादला पिछले अप्रैल में कुल 44 बार हो चूका है वो हरियाणा में है और 1991 कैडर के अधिकारी है और उनक मामला मीडिया ने तब दिखाया जब उन्होंने DLF और रोबर्ट वाड्रा के बिच हुए विवादस्पद भूमि समझोते को देश के सामने रखा उससे पहले उन्होंने न जाने कितने भूमि की अवैध खरीद्फरोक्थ को उजागर किया जिसके फल स्वरुप वो औसतन हर विभाग में तक़रीबन 6 महीने ही टिक पाए और वो आज भी इस पुरे तंत्र से अकेले ही लड़ रहे है।

उसी प्रकार सिवान के इंजिनियर सतेन्द्र दुबे जिन्होंने  NHAI में हो रहे भ्रष्ट्राचार को उजागर किया और उसके फलस्वरूप उनकी हत्या कर दी गई. ऐसे तमाम उदाहरण है जो मेरी इस बात पे पूरी तरह से खरे साबित होते है की नेताओ को नौकरशाह एक ऐसे सेनापति की तरह चाहिए जो उनकी रक्षा हर क़ानूनी एवं गैरकानूनी कार्य में करे न की वो नौकरशाह समाज एवं जनता की रक्षा करे।

उदहारण के तौर पर सपा नेता नरेन्द्र भट्टी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए डंके की चोट पे कहा की उन्होंने श्रीमती दुर्गाशक्ति नागपाल को मात्र 41 मिनट में बर्खास्त करा दिया और वही पे उपस्थित आम जनता उनका ताली  बजा कर उनके इस बात पर गर्व महसूस कर रही थी, मेरे कहने का मतलब ये है की हम सब भी कही न कही इस समाज को दूषित करने में अपना योगदान दे रहे  है वरना पहले जहा उस गाँव के निवासी खुद ही कबूल  कर रहे थे की श्रीमती नागपाल ने कुछ भी गलत नहीं किया वही आज वो चन्द सियासत के ठेकेदारों के कहने पे घटना की पूरी जिम्मेदारी श्रीमती नागपाल पे लगा रहे है.

जिस गाँव में बिजली,सड़क, पानी एवं शिक्षा जैसी मुलभुत सुविधाओं का आभाव है वहा की जनता इन सब के बजाये मस्जिद जैसी समस्याओ पे अपना ध्यान केन्द्रित कर रही है, आज जरुरत है हमें एक ऐसे समाज की जो प्राथमिकताओं को समझे और ऐसे अराजक तत्व  जो राजनीती एवं हर उस क्षेत्र में अपनी पकड़ बना चुके है उन्हें जड़ से उखाड़ कर फेक दे और इस सभ्य समाज में
 निर्भीक एवं कर्मथ्य अधिकारियो को अपना काम स्वतंत्रता से करने का मौका दे तभी इस समाज और इस देश का कल्याण होगा और हम प्रगति के रस्ते पे प्रसस्त होंगे क्योंकि समाज के  विकास से ही देश  विकसित करेगा।


अंशुमन श्रीवास्तव